Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Mar, 2024 09:05 AM
104 वर्ष से भी अधिक उम्र बिताने वाली दादी जानकी (1 जनवरी 1916 - 27 मार्च 2020) ने ब्रह्माकुमारीज के संस्थापक दादा लेखराज द्वारा स्थापित आदर्शों को अपनाते हुए विश्व भर में स्व: परिवर्तन से विश्व परिवर्तन का
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Rajyogini Dadi Janki Indian spiritual leader: 104 वर्ष से भी अधिक उम्र बिताने वाली दादी जानकी (1 जनवरी 1916 - 27 मार्च 2020) ने ब्रह्माकुमारीज के संस्थापक दादा लेखराज द्वारा स्थापित आदर्शों को अपनाते हुए विश्व भर में स्व: परिवर्तन से विश्व परिवर्तन का संदेश बखूबी प्रसारित किया। केन्द्र सरकार ने उन्हें स्वच्छता अभियान का ब्रांड एम्बैसेडर नियुक्त किया था।
उन्हें विश्व की सर्वाधिक तेज मस्तिष्क वाली महिलाओं में से एक माना जाता था, जिन्हें न केवल उनके निजी जीवन की घटनाओं बल्कि संस्था की तमाम गतिविधियां याद करने में एक मिनट का समय भी नहीं लगता था। वह नारी शक्ति की अद्भुत मिसाल थीं।
दादी ने पाकिस्तान का हिस्सा बन चुके सिंध प्रान्त में 1 जनवरी, 1916 को जन्म लेने के बाद सर्वप्रथम पंजाबी व हिन्दी में पढ़ाई शुरू की थी। गुरबाणी के साथ-साथ सुखमणि साहिब का पाठ वह नियमित किया करती थीं। इसी संदर्भ में दादी ने ‘सिमर सिमर सिमर सुख होय’ और ‘ऊंचे से ऊंचा भगवंत कोई न जाने तुमरा अंत, मात पिता तुम हम बारिक तेरे’ तक कंठस्थ किया हुआ था। दादी जानकी 21 वर्ष की थीं जब उन्होंने आध्यात्मिक मार्ग चुना और ब्रह्माकुमारीज की संस्थापक सदस्य बन गईं। बाद में 1974 में, उस समय अंग्रेजी नहीं बोलने के बावजूद वह इस आंदोलन की राजदूत बनने के लिए ब्रिटेन चली गईं और लगभग 40 वर्षों तक वहां रहीं।
वह महसूस करती थीं कि जीवन को नर्क या स्वर्ग बनाना इन्सान के अपने हाथ में है। कोई भले महल या आलीशान कोठियां बना ले और बाहर सुरक्षा गार्द भी लगा ले, लेकिन यदि घर में कलह-क्लेश होगा, तो जीवन सभी भौतिक साधनों के बावजूद नर्क समान बन जाएगा।
सुखी जीवन के लिए दादी जी संदेश देती थीं कि न किसी को दु:ख दो और न दु:ख लो। कठोर दिल वाले व्यक्ति कोमल दिल वालों को दु:ख दिया करते हैं, लेकिन कोमल हृदय वाले यदि सहनशक्ति विकसित कर लें और सच्चाई के रास्ते पर नि:स्वार्थ भाव से चलें, तो उनकी विजय अवश्य होगी।
याद रखना चाहिए कि पांडव भले ही संख्या में कम थे और कौरव कई गुणा अधिक, लेकिन सच्चाई और नैतिक मूल्यों का दामन थामने वाले पांडवों की अंतत: विजय हुई। सत्य की नैया भले ही डोले, लेकिन डूबेगी नहीं। दादी जी कहती थीं कि अवगुण अपने जीवन से निकाल फैंको, गुणों की पूंजी बढ़ाओ।