Edited By Niyati Bhandari,Updated: 21 Jan, 2024 11:49 AM
राम अर्थात मानवीय गुणों तथा मर्यादाओं की विराटता। या यूं कहें कि इस विराटता का लोकजीवन में सहजता से समाने का करुणामय दिव्य
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Ayodhya Ram Mandir: राम अर्थात मानवीय गुणों तथा मर्यादाओं की विराटता। या यूं कहें कि इस विराटता का लोकजीवन में सहजता से समाने का करुणामय दिव्य स्वरूप ही राम हैं। राम कण-कण में समाए हैं, घट-घट के वासी हैं, उनका मंदिर किसी एक विशेष समुदाय का नहीं है। राम जन को जन से जोड़ना सिखाते हैं। राम यशस्वी भारतवर्ष के संविधान को चित्रित रूप में सुशोभित करते हैं। संविधान के तृतीय खंड के आरंभ में त्रेतायुग के रामराज्य की दिव्य छवि प्रस्तुत की गई है। चक्रवर्ती राजा भगवान श्री राम की सर्वोत्तम शासन व्यवस्था, अर्थनीति, धर्मनीति, समाजनीति और राजनीति की मर्यादाएं स्थापित करने का सुखद श्रेष्ठ जीवन ही रामराज्य कहलाता है।
न केवल भारत में, अपितु अनेकों देशों की संस्कृति राम के मर्यादित व्यक्तित्व के ओज से ओत-प्रोत है। जिस प्रकार आकाश, पृथ्वी, वायु, सूर्य, चंद्र आदि बिना किसी भेदभाव के सम दृष्टि से सम्पूर्ण सृष्टि को अपने गुण धर्म से पोषित करते हैं, वैसे ही ‘राम’ देव, दनुज, मनुज आदि सम्पूर्ण प्राणी मात्र के हैं। राम शबरी और अहल्या की प्रतीक्षा में हैं, केवट के भावों में हैं, निषाद की मित्रता में हैं, जटायु के कर्तव्य में हैं, वानर आदि आदिवासी जातियों के सेवा-सहयोग में हैं। राम वाल्मीकि की रामायण के महानायक हैं, तुलसी की मानस की मर्यादा में हैं। रैदास और कबीर के दृष्टिकोण में हैं, राम सर्वलोकों के हैं, जन-जन के हैं। राम निर्मल भक्ति के हैं। रहीम की रामायण प्रतिलिपि प्रमाणित करती है की राम रहीम के भी हैं। जैन और बौद्ध प्रचारक भी राम के व्यक्तित्व से अछूते नहीं रहे। राम प्रशंसक के भी है और निज निंदक के भी हैं।
वैदिक संप्रदाय, वैष्णव धर्म, शैव धर्म, शाक्त धर्म और स्मार्त धर्म को स्वयं के व्यक्तित्व में जीवंत रूप से दर्शाने वाले शिव की भक्ति में ध्यानरत रहते राम स्वयं भी तो शैव ही थे, रामेश्वरम में स्थापित शिवलिंग इसका साक्षात प्रमाण है। श्री राम शाक्त भी थे। शास्त्र सम्मत है की उन्होंने नवरात्रि का अनुष्ठान किया था। वनवास की अवधि के दौरान राम अनेकों ऋषि-मुनियों और साधु-संन्यासियों के आश्रमों में भी गए थे जहां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पर गहन मंथन करते हैं। समर्पित हृदय ही राम का सबसे भव्य मन्दिर है किंतु प्रत्येक युग के लोकजीवन में सात्विक, राजसी और तामसिक और मिश्रित वृत्तियों का द्वन्द्व काल का स्वरूप बदल बदल कर (वर्तमान, भूतकाल, भविष्यकाल) निरन्तर गतिमान रहता है। मनुष्य की यही वृत्तियां बार-बार धरती मां हो हर्षित-गर्वित और रक्तरंजित भी करती हैं। वर्तमान का सामाजिक ढांचा इसका प्रमाण है।
ऐसे में यह कहना की ‘रामलला का मन्दिर मात्र रामानंद संप्रदाय का है’ उचित प्रतीत नहीं होता। ऐसे संकीर्ण ब्यान से विश्व विख्यात ‘रामानंद संप्रदाय निर्मोही अखाड़े’ का किसी प्रकार का सरोकार नहीं है, हालांकि रामानंद संप्रदाय ने रामलला जन्म भूमि अयोध्या के लिए एक लंबा संघर्ष किया है। फलस्वरूप, परम आनंद की प्राप्ति का उत्सव समीप ही है ।
रामानंद संप्रदाय जीव मात्र में प्रभु राम की छवि को देखता है। राम के दर्शाए पथ का अनुगामी है और पुन: यही उद्धघोष करते हैं कि राम सम्पूर्ण प्राणी मात्र के हैं। राम के व्यक्तित्व की भव्यता को अपने-अपने चरित्र द्वारा प्रमाणित करना ही वास्तविक राम भक्ति है।