Ramayana and Ramcharitmanas: क्या आप जानते हैं वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में क्या है अंतर ?

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jan, 2024 10:37 AM

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महर्षि वाल्मीकि ने युगों पहले मूल रामायण की रचना की थी। जिसमें भगवान विष्णु के 7वें अवतार श्रीराम की लीलाओं का वर्णन है। तुलसीदास

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Difference between Valmiki Ramayana and Ramcharitmanas: महर्षि वाल्मीकि ने युगों पहले मूल रामायण की रचना की थी। जिसमें भगवान विष्णु के 7वें अवतार श्रीराम की लीलाओं का वर्णन है। तुलसीदास जी ने मानस की रचना की उस समय मुगल हिन्दू धर्म को मिटाने का पूरा प्रयास कर रहे थे। वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस के घटनाक्रमों में अंतर। रामायण का अर्थ है राम की कथा अथवा मंदिर, वहीं रामचरितमानस का अर्थ है राम चरित्र का सरोवर। मंदिर में जाने के कुछ नियम होते हैं, इसी कारण वाल्मीकि रामायण को पढ़ने के भी कुछ नियम हैं, इसे कभी भी कैसे भी नहीं पढ़ा जा सकता। इसके उलट रामचरितमानस को लेकर कोई विशेष नियम नहीं है। इसमें एक सरोवर की भांति स्वयं को पवित्र किया जा सकता है।

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वाल्मीकि रामायण के राम मानवीय हैं, जबकि रामचरितमानस के राम अवतारी। चूंकि वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे, उन्होंने श्रीराम का चरित्र सहज ही रखा है। वाल्मीकि के लिए राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं अर्थात पुरुषों में श्रेष्ठ। इसके उलट तुलसीदास के लिए श्रीराम न केवल अवतारी हैं बल्कि उससे भी ऊपर परब्रह्म हैं। इसका वर्णन मानस में इस प्रकार किया गया है कि जब मनु एवं शतरूपा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश से वरदान लेने से मना कर देते हैं तो परब्रह्म श्रीराम उन्हें दर्शन देते हैं।

तुलसीदास के लिए श्रीराम उन नारायण, जिनके वे अवतार थे, उनसे भी ऊपर हैं। महर्षि वाल्मीकि श्रीराम के प्रसंशक थे। किन्तु उनके आराध्य भगवान शंकर थे। जिनकी सहायता से उन्होंने रामायण की रचना की। तुलसीदास श्रीराम के अनन्य भक्त थे और ऐसी मान्यता है कि उन्होंने रामचरितमानस की रचना स्वप्न में भगवान शिव की आज्ञा के बाद की जिसमें रामभक्त हनुमान ने उनकी सहायता की। रामायण में वनवास के समय महर्षि वशिष्ठ अत्यंत क्रोधित होकर कैकेयी से कहते हैं कि यदि राम वन जाएं तो सीता को ही सिंहासन पर बिठाया जाये। स्त्री सशक्तिकरण का ये जीवंत उदाहरण है। रामचरितमानस में ऐसा वर्णन नहीं है।

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वाल्मीकि रामायण में ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या को अदृश्य हो उसी आश्रम में रहने का श्राप मिला था। जबकि रामचरितमानस में वे पत्थर की शिला बन जाती हैं। वाल्मीकि रामायण में श्रीराम अहिल्या का उद्धार उनके पैरों को छूकर करते हैं, जबकि रामचरितमानस में श्रीराम अपने पैर को अहिल्या की शिला पर रखकर अपनी चरण धूलि से उसका उद्धार करते हैं।

वाल्मीकि रामायण में भगवान शंकर के "पिनाक" धनुष का वर्णन है, जिसे श्रीराम ने तोड़ा। किन्तु रामचरतिमानस में उसे केवल "शिव धनुष" कहा गया है। रामचरितमानस के अनुसार धनुष टूटने पर परशुराम स्वयंवर स्थल में आये और उन्होंने श्रीराम से अपने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने को कही।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब श्रीराम विवाह के बाद अयोध्या लौट रहे थे, तब मार्ग में उन्हें परशुराम मिले और श्रीराम ने उनका क्रोध शांत करने के लिए उनके वैष्णव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। रामचरितमानस में खर-दूषण के संहार के समय ही रावण समझ जाता है कि श्रीराम नारायण के अवतार हैं। किन्तु वाल्मीकि रामायण में युद्धकांड में कुम्भकर्ण एवं मेघनाद की मृत्यु के बाद रावण को समझ आता है कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम जब रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना करते हैं तो हनुमान जी उनसे रामेश्वरम की व्याख्या करने को कहते हैं। तब श्रीराम केवल इतना कहते हैं कि "जो राम का ईश्वर है वही रामेश्वर है।" रामचरितमानस में भी श्रीराम यही कहते हैं पर उसमें तुलसीदास ने एक प्रसंग और जोड़ा है कि भगवान शंकर भी माता पार्वती से रामेश्वरम की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि "राम जिनके ईश्वर हैं वो रामेश्वरम हैं।"

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वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी को मनुष्य बताया गया है जो वानर समुदाय के थे और वन में रहते थे। वानर = वन (जंगल) + नर (मनुष्य) जबकि रामचरितमानस में हनुमान को वानर (बन्दर) प्रजाति का बताया गया है। रामचरितमानस के अनुसार रामसेतु का निर्माण नल एवं नील दोनों ने किया था क्यूंकि उन्हें श्राप मिला था कि उनके हाथ से छुई वस्तु पानी में नहीं डूबेगी। किन्तु वाल्मीकि रामायण में रामसेतु का निर्माण केवल नल ने किया था क्यूंकि वे असाधारण शिल्पी थे और विश्वकर्मा का अंश थे। इसी कारण रामसेतु को "नलसेतु" भी कहा जाता है। रामायण या रामचरितमानस में कहीं भी हनुमान को "रुद्रावतार" नहीं कहा गया है।

वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड राष्ट्रीय गौरव रत्न से विभूषित
पंडित सुधांशु तिवारी
एस्ट्रोलॉजर/ ज्योतिषाचार्य
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