Rath Yatra 2019: जानिए, क्यों निकाली जाती है रथयात्रा ?

Edited By Lata,Updated: 30 Jun, 2019 05:09 PM

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ये बात तो सब जानते ही हैं कि जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल उड़ीसा यानि पूरी धाम से निकाली जाती है और इस बार रथयात्रा 04 जूलाई 2019 को निकाली जा रही है।

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ये बात तो सब जानते ही हैं कि जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल उड़ीसा यानि पूरी धाम से निकाली जाती है और इस बार रथयात्रा 04 जूलाई 2019 को निकाली जा रही है। इस पावन यात्रा में भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर निकलते हैं और अपने भक्तों का दर्शान देते हैं। आइए जानते हैं आखिर क्यों और कैसे निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा। 
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हमारे सनातन धर्म में तमाम पर्व व उत्सवों में श्री जगन्नाथ रथ यात्रा का काफी महत्व है, जिसका वर्णन कई धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों में मिलता है। जिसके अनुसार भगवान की इस पावन यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में भक्तगण कई पारंपरिक यंत्रों की ध्वनि के बीच विशाल रथों को मोटे-मोटे रस्सों से खींचते हैं। इस पवित्र रथयात्रा का आरंभ भगवान श्री जगन्नाथ जी के रथ के सामने सोने के हत्थे वाली झाडू को लगाकर किया जाता है। इसके पश्चात् मंत्रोच्चार एवं जयघोष के साथ विधि-विधान के साथ रथयात्रा शुरू की जाती है। मान्यता है कि एक दूसरे को सहयोग देते हुए रथ खींचने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। विश्व प्रसिद्ध इस रथ यात्रा में सबसे पहले बलभद्र जी का रथ तालध्वज प्रस्थान करता है। जिसके बाद बहन सुभद्रा जी का पद्म रथ चलना शुरू होता है। सबसे आखिर में जगन्नाथ जी के रथ नंदी घोष को भक्तगण बड़े ही श्रद्धापूर्वक लोग खींचना शुरू करते हैं।
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जगन्नाथ जी की रथयात्रा गुंडिचा माता मंदिर पहुंचकर संपन्न होती है। यह वही मंदिर है, जहां विश्वकर्मा ने तीनों देव प्रतिमाओं का निर्माण किया था। इस जगह को भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है। सूर्यास्त तक अगर रथ गुंडिचा  मंदिर नहीं पहुंच पाता तो वह अगले दिन अपनी यात्रा पूरी करता है। इस मंदिर में भगवान एक सप्ताह तक रहते हैं। जहां उनकी पूजा अर्चना की जाती है। भगवान को मौसी के घर स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता है। जिसके बाद जब भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं, तो उन्हें पथ्य का भोग लगाया जाता है, जिससे वो जल्दी ठीक हो जाते हैं।
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रथयात्रा के तीसरे दिन भगवान जगन्नाथ को ढ़ूढ़ते हुए लक्ष्मी जी मंदिर आती हैं, लेकिन द्वैतापति दरवाजा बंद कर देते हैं। इससे नाराज होकर लक्ष्मी जी रथ का पहिया तोड़ देती हैं और पुरी के मुहल्ले हेरा गोहिरी साही में स्थित अपने एक मंदिर में लौट आती हैं। जिसके बाद भगवान जगन्नाथ लक्ष्मी जी को मनाने वहां जाते हैं। कहा जाता है कि वहां वो उनसे क्षमा मांगने के साथ कई तरह के उपहार देकर प्रसन्न करने की कोशिश भी करते रहते हैं। मान्यता है कि अंत मे जिस दिनं भगवान जगन्नाथ माता लक्ष्मी जी को मना लेते हैं, उसे विजया दशमी और वापसी को बोहतड़ी गोंचा के रूप में मनाया जाता है। नौ दिन पूरे होने पश्चात भगवान जगन्नाथ, जगन्नाथ मंदिर वापस चले जाते हैं।

भगवान जगन्नाथ की यह पावनन रथ यात्रा नौ दिनों तक धूम-धाम से चलती है। विश्व प्रसिद्ध इस रथ यात्रा में कई ऐसी अनोखी बाते होती हैं, जो इसके आकर्षण का केंद्र होती है। यह विश्व में शायद अकेले देवता हैं, जो हर साल रथ यात्रा के माध्यम से घूमने निकलते हैं और उनके साथ लाखों-लाख भक्त साथ-साथ चलते हैं। 

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