रवि प्रदोष व्रत: पूजन विधि से लेकर जानें व्रत उद्यापन तक की विधि

Edited By Jyoti,Updated: 24 Nov, 2019 08:37 AM

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शास्त्रों में वर्णन के अनुसार हर माह में आने वाले प्रदोष व्रत  पर देवों के देव महादेव की पूजा का विधान है। हिंदू धर्म में भगवान शिव समस्त देवताओं में से सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
शास्त्रों में वर्णन के अनुसार हर माह में आने वाले प्रदोष व्रत  पर देवों के देव महादेव की पूजा का विधान है। हिंदू धर्म में भगवान शिव समस्त देवताओं में से सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं। प्रदोष व्रत के दौरान संध्या काल यानि प्रदोष व्रत में इनकी उपासना की जाती है। हिंदू धर्म में इसे सबसे शुभ व महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। बता दें हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13 वें दिन (त्रयोदशी) को मनाय जाता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति के सभी पाप धूल जाते हैं तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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प्रदोष व्रत का महत्व
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक प्रदोष व्रत को रखने वाले व्यक्ति को दो गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत से  जुड़े पौराणिक तथ्य के अनुसार 'एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी।

व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यों को अधिक करेगा। उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी। इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म-जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ता है। उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत से मिलने वाले
अलग-अलग दिन के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है। जिसके मुताबिक रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

प्रदोष व्रत विधि
त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठकर नित्यकर्मों से निवृत होकर, भोले नाथ का स्मरण करें।

पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है। बता दें इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता।

पूजन के लिए घर के पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार कर लें।
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फिर मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाएं।

ध्यान रखें प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का ही प्रयोग करें।

अब उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करें और पूजन शिव जी के 'ॐ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल चढ़ाएं।

प्रदोष व्रत का उद्यापन
ज्योतिष विद्वानों के मुताबिक ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद त्रयोदशी तिथि पर ही प्रदोष व्रत के दिन ही उद्यापन करना चाहिए।

उद्यापन के एक दिन महादेव के पुत्र श्री गणेश जी की पूजा अवश्य करें।

'ॐ उमा सहित शिवाय नम:' मंत्र का एक माला यानि 108 बार जाप करते हुए हवन करें, इसमें खीर का प्रयोग ज़रूर करें।

हवन समाप्त होने के बाद भोलेनाथ की आरती के उपरांत शान्ति पाठ करें।
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अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन करवाकर अपनी सामर्थ्य अनुसार उन्हें दान दें।

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