Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Jul, 2023 09:10 AM
इंद्रद्युम्न बड़े धर्मात्मा एवं परोपकारी राजा थे। उन्होंने जनता की भलाई के लिए अनेक तालाबों, धर्मशालाओं, गौशालाओं का निर्माण कराया।
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Religious Katha: इंद्रद्युम्न बड़े धर्मात्मा एवं परोपकारी राजा थे। उन्होंने जनता की भलाई के लिए अनेक तालाबों, धर्मशालाओं, गौशालाओं का निर्माण कराया। वह हर समय लोगों की भलाई के कार्य में लगे रहते थे। सेवा-परोपकार के पुण्यों के कारण ही उन्हें स्वर्ग में स्थान मिला।
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कुछ समय बाद स्वर्ग में धर्मराज ने उनसे कहा, ‘‘आपके पुण्य कुछ क्षीण होने लगे हैं, इसलिए आप थोड़े समय तक ही स्वर्ग में रह सकेंगे।
राजा ने कहा, ‘‘धर्मराज, मैंने जीवन भर लोगों की भलाई के कार्य किए। इतने पुण्य अर्जित किए तभी तो मैं स्वर्ग का अधिकारी बना।’’
धर्मराज ने कहा, ‘‘तुम्हारे इन अहंकार भरे शब्दों के कारण आधे पुण्य और क्षीण हो गए हैं तथा अन्य बचे पुण्य तुम्हारी संतान क्षीण कर रही है।’’
राजा ने पूछा, ‘‘मेरी संतान मेरे पुण्य क्षीण कैसे कर रही है?
धर्मराज के दूत ने बताया, ‘‘तुमने लोगों की भलाई के लिए जो धर्मशालाएं, गौशालाएं, तालाब आदि बनाए थे, उन्हें तुम्हारे पुत्र-पौत्र लोभ के कारण तुड़वाकर बेच रहे हैं। वे लोगों की भलाई को भूलकर भोग-विलास में लीन रहने लगे हैं।
पुण्य तभी तक संचित रहते हैं जब आने वाली पीढ़ी भी संस्कारवान हो, वह भी अपने पूर्वजों की तरह परोपकार के कार्यों में लीन रहे।
राजा की जिज्ञासा का समाधान हो गया।