आप भी बन सकते हैं हर दिल अजीज, आइए जानें कैसे

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jul, 2020 07:23 AM

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काशी में एक संत रहते थे। उनके आश्रम में कई शिष्य अध्ययन करते थे। कुछ शिष्यों की शिक्षा पूरी होने पर एक दिन संत ने उन्हें बुलाकर कहा, ‘‘अब तुम लोगों को समाज के कठोर नियमों का पालन

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Religious Katha: काशी में एक संत रहते थे। उनके आश्रम में कई शिष्य अध्ययन करते थे। कुछ शिष्यों की शिक्षा पूरी होने पर एक दिन संत ने उन्हें बुलाकर कहा, ‘‘अब तुम लोगों को समाज के कठोर नियमों का पालन करते हुए भी विनम्रता से समाज की सेवा करनी होगी।’’

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एक शिष्य ने कहा, ‘‘गुरुदेव हर समय विनम्रता से काम नहीं चलता।’’ संत समझ गए कि अभी उसमें अभिमान का अंश मौजूद है।

थोड़ी देर मौन रहने के बाद उन्होंने कहा, ‘‘जरा मेरे मुंह के अंदर ध्यान से देखकर बताओ कि अब कितने दांत शेष रह गए हैं?’’

बारी-बारी से सभी शिष्यों ने संत का मुंह देखा और एक साथ बोले, ‘‘आपके सभी दांत टूट गए हैं।’’

संत ने फिर कहा, ‘‘जीभ है कि नहीं?’’

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शिष्यों ने समझा गुरु जी मजाक कर रहे हैं। बोले, ‘‘उसे देखने की जरूरत ही नहीं है। जीभ अंत तक साथ रहती है।’’

संत ने कहा, ‘‘यह अजीब बात है कि जीभ जन्म से मृत्यु तक साथ रहती है और दांत जो बाद में आते हैं पहले ही साथ छोड़ देते हैं जबकि उन्हें बाद में जाना चाहिए। ऐसा क्यों होता है?’’

एक शिष्य बोला, ‘‘यह तो सृष्टि का नियम है।’’

संत ने कहा, ‘‘नहीं वत्स। इसका जवाब इतना सरल नहीं है जितना तुम समझ रहे हो। जीभ इसलिए नहीं टूटती क्योंकि उसमें लोच है। वह विनम्र होकर अंदर पड़ी रहती है। उसमें किसी तरह का अहंकार नहीं है। उसमें विनम्रता से सब सहने की शक्ति है इसलिए वह हमारा हमेशा साथ देती है जबकि दांत बहुत कठोर होते हैं। उन्हें अपनी कठोरता का अभिमान रहता है। वे जानते हैं कि उनके कारण ही मनुष्य की शोभा बढ़ती है इसलिए वे निष्ठुर होते हैं। उनका यही अहंकार और कठोरता उनके क्षरण का कारण है इसलिए तुम्हें यदि समाज की सेवा गरिमा के साथ करनी है तो जीभ की तरह नम्र बनकर नियमों का पालन करो।’’

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