Religious Katha: इच्छा और जरूरत में अंतर जानना चाहते हैं तो पढ़ें ये कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Aug, 2023 08:28 AM

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एक धनी सेठ ने सोने से तुलादान किया। गरीब लोगों को खूब सोना बांटा गया। उसी गांव में एक संत भी रहते थे। सेठ जी ने उन्हें भी आमंत्रित किया।

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Religious Katha:  एक धनी सेठ ने सोने से तुलादान किया। गरीब लोगों को खूब सोना बांटा गया। उसी गांव में एक संत भी रहते थे। सेठ जी ने उन्हें भी आमंत्रित किया। वह आना तो नहीं चाहते थे पर सेठ जी के बार-बार आग्रह करने पर आ गए। वह संत जी से बोले, ‘‘गुरुदेव, आज मैंने सोना बांटा है, आप भी कुछ लें तो मेरा कल्याण होगा।’’

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संत जी बोले, ‘‘वत्स, तुमने अच्छा काम किया है, परंतु मुझे सोने की आवश्यकता ही नहीं है। हमें तो प्रभु ने इस धरा पर भेजा ही इसलिए है कि आप लोगों को इस मोहमाया के बंधनों से दूर करके प्रभु से जोड़ा जाए।’’

संत जी के समझाने पर भी सेठ हठ करने से नहीं हटा तो संत जी समझ गए कि इसके मन में धन का अहंकार है। उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है वत्स, पहले एक तुलसी का पता मंगवाओ।’’

सेठ ने तुलसी के पत्ते मंगवा कर उनके सामने रख दिए। संत जी ने अपने माथे पर लगा चंदन उतार कर तुलसी पर राम का नाम लिख दिया और बोले,‘‘वत्स, तुम्हें पता है मैं किसी से कुछ लेता नहीं। मेरा स्वामी मुझे इतना खाने-पहनने को दे देता है कि मुझे और किसी से कुछ लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती। केवल भोजन और वस्त्र के अलावा मैं कोई इच्छा पनपने ही नहीं देता। परंतु आप इतना आग्रह कर रहे हैं तो इस पत्ते के बराबर सोना तोल दें।’’

इसे मजाक समझ कर सेठ ने कहा, ‘‘गुरुदेव, आप मुझसे दिल्लगी क्यों कर रहे हैं? आपकी कृपा से मेरे घर में सोने का खजाना भरा पड़ा है। मैं तो आपको निर्धन जानकर ही देना चाहता हूं ताकि आपको भोजन और वस्त्र किसी से मांगने न पड़ें।’’

 

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संत जी बोले बेटा, ‘‘सबको देने वाला वह सर्व शक्तिमान नीली छतरी वाला है। किसी को बताता भी नहीं और देने वाले को जताता भी नहीं। फिर भी तुम देना चाहते हो तो तुलसी के पत्ते के बराबर सोना तोल दो।’’

धनी सेठ ने झुंझला कर तराजू मंगवाया और उसके एक पलड़े में पत्ता रख कर दूसरे पलड़े में सोना रखने लगा। कई मन सोना चढ़ गया पर तुलसी के पत्ते वाला पलड़ा हिला तक नहीं। सेठ आश्चर्य में डूब गया। उसने संत जी के चरण पकड़ लिए और बोला,‘‘गुरुदेव, आपने मेरे अहंकार का नाश करके मुझ पर बड़ी कृपा की है। सच्चा धन तो स्वयं आप हैं।’’

संत जी बोले,‘‘भाई इसमें मेरा क्या है? यह तो नाम की महिमा है। नाम की तुलना जगत की किसी भी वस्तु से नहीं की जा सकती। ईश्वर ने ही दया करके तुम्हें अपने नाम का महत्व दिखाया है। अब तुम हर कार्य इस घटना को याद करते हुए करना और इच्छाओं को जरूरतें न बनाना।’’     

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