Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Feb, 2024 08:29 AM
एक सेठ के चार बेटों की चार बहुएं आईं। वे आपस में रोज लड़ाई-झगड़ा करती थीं। दिन-रात गृह कलह मचा रहता। इससे खिन्न होकर लक्ष्मी जी ने वहां से चले जाने
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Religious Katha: एक सेठ के चार बेटों की चार बहुएं आईं। वे आपस में रोज लड़ाई-झगड़ा करती थीं। दिन-रात गृह कलह मचा रहता। इससे खिन्न होकर लक्ष्मी जी ने वहां से चले जाने की ठानी। रात को लक्ष्मी जी ने सेठ को स्वप्न में आकर कहा कि अब मैं जा रही हूं। यह कलह मुझसे नहीं देखी जाती। जहां ऐसे लड़ने-झगड़ने वाले लोग रहते हैं वहां मैं नहीं रह सकती।
सेठ रोते हुए लक्ष्मी जी के पैरों से लिपट गया और कह- मैं आपका अनन्य भक्त हूं। मुझे छोड़कर आप न जाओ। लक्ष्मी को दया आ गई।
उन्होंने कहा, “कलह के स्थान पर मेरा रुकना तो संभव नहीं, ऐसी स्थिति में अब मैं तेरे घर तो किसी भी तरह से नहीं रहूंगी पर तुम्हें कुछ और मांगना हो तो एक वरदान मुझ से मांग लो।
सेठ ने कहा, “आप यह वरदान दें कि मेरे घर के सब लोगों में प्रेम और एकता बनी रहे।” वरदान देने के बाद लक्ष्मी जी वहां से चली गईं। दूसरे दिन से ही सब लोग प्रेमपूर्वक रहने लगे। एक दिन धनिक ने स्वप्न में देखा कि लक्ष्मी जी घर में फिर वापस आ गई हैं। उसने उन्हें प्रणाम किया और पुन: पधारने के लिए धन्यवाद दिया।
मां लक्ष्मी ने कहा, ‘“इसमें धन्यवाद की कोई बात नहीं है। जहां एकता होती है वहां तो मैं बिना बुलाए ही पहुंच जाती हूं। जो लोग दरिद्रता से बचना चाहते हैं और घर से लक्ष्मी को नहीं जाने देना चाहते उन्हें अपने घर में कलह की परिस्थितियां उत्पन्न नहीं होने देनी चाहिएं।”