महाभारत का ये पात्र आज भी है जीवित

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 02 May, 2018 10:22 AM

religious story about mahabharat

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। पांडव पक्ष के लोग विजय की खुशी में सुख की निद्रा में लीन थे। उनकी ऐसी धारणा थी कि कौरव पक्ष का एक भी व्यक्ति शेष न रहने के कारण युद्ध समाप्त हो चुका है किंतु यह उनकी भूल थी।

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। पांडव पक्ष के लोग विजय की खुशी में सुख की निद्रा में लीन थे। उनकी ऐसी धारणा थी कि कौरव पक्ष का एक भी व्यक्ति शेष न रहने के कारण युद्ध समाप्त हो चुका है किंतु यह उनकी भूल थी। कौरव पक्ष का एक व्यक्ति जीवित था। जिसके हृदय में बदला लेने की भावना रह-रह कर धधक रही थी। वह था, गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा। उसने युद्ध के नियम ताक पर रख दिए और हाथ में तलवार लिए पांडवों के शिविर में प्रवेश किया। उसने द्रौपदी के 5 पुत्रों का वध कर दिया।

अश्वत्थामा का यह कुकृत्य जब दूसरे दिन द्रौपदी को पता चला तो वह पुत्रों के शोक में विह्वल हो गई। उसके हृदय में क्रोध की ज्वाला धधक उठी। उसकी हालत देख अर्जुन भी आक्रोशित हो गया। वह द्रौपदी से बोला, ‘‘पांचाली, शोक न करो। मैं उस नीच को अभी पकड़ कर तुम्हारे सामने पेश करूंगा और इसका बदला लूंगा।’’

भीम ने भी अर्जुन का साथ दिया और वे दोनों अश्वत्थामा को बांधकर द्रौपदी के पास ले आए। गुरुपुत्र को इस प्रकार से बंधा देख द्रौपदी का कोमल ममतामय हृदय पिघल गया। अर्जुन ने जैसे ही अश्वत्थामा का शीश काटने के लिए तलवार उठाई द्रौपदी ने उसका हाथ थाम लिया। वह बोली, ‘‘स्वामी आप इसे पकड़ लाए, बस इतने से ही मैं संतुष्ट हूं। यह गुरुपुत्र है, इसे छोड़ दिया जाए क्योंकि इसकी माता कृपी भी अभी जीवित हैं और मैं नहीं चाहती कि वह भी इसके वियोग में शोक करें। पुत्र शोक का मुझे पूर्ण अनुभव है। मैं नहीं चाहती कि एक माता को शोक के सागर में डुबाया जाए।’’

अपने 5 पुत्र गंवा चुकी मां की इन भावनाओं ने कृपी पुत्र का जीवन बचा दिया। अश्वत्थामा के सिर की मणि को निकालकर उसे मुक्त कर दिया गया। मणि निकल जाने से वह श्रीहीन हो गया। बाद में श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को 6 हजार साल तक भटकने का शाप दिया। अंत में अर्जुन ने उसे उसी अपमानित अवस्था में शिविर से बाहर निकाल दिया। अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे। द्रोणाचार्य ने शिव को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके उन्हीं के अंश से अश्वत्थामा नामक पुत्र को प्राप्त किया। अश्वत्थामा के पास शिवजी द्वारा दी गई कई शक्तियां थीं। वह स्वयं शिव का अंश थे। जन्म से ही अश्वत्थामा के मस्तक पर अमूल्य मणि विद्यमान थी जो उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। इस मणि के कारण ही उस पर किसी भी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं हो पाता था। द्रौपदी ने अश्वत्थामा को जीवनदान देते हुए अर्जुन ने उसकी मणि उतार लेने का सुझाव दिया। अत: अर्जुन ने इनकी मुकुट मणि लेकर प्राणदान दे दिया। अर्जुन ने यह मणि द्रौपदी को दे दी जिसे द्रौपदी ने युधिष्ठिर के अधिकार में दे दिया।

शिव महापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित है और वह गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां है यह नहीं बताया गया है।

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