Edited By Jyoti,Updated: 11 Jul, 2020 10:40 AM
एक नास्तिक युवक महर्षि रमण के पास आया। उसने महॢष से कहा, ‘‘महाराज, ईश्वर की कल्पना कुछ अंधविश्वासियों ने की है। मैं तो ईश्वर के अस्तित्व में ही विश्वास नहीं करता।’’
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एक नास्तिक युवक महर्षि रमण के पास आया। उसने महॢष से कहा, ‘‘महाराज, ईश्वर की कल्पना कुछ अंधविश्वासियों ने की है। मैं तो ईश्वर के अस्तित्व में ही विश्वास नहीं करता।’’
‘‘तुम ईश्वर में विश्वास क्यों नहीं करते।’’ महर्षि ने पूछा।
‘‘मैं उसी को सत्य मानता हूं जो दिखाई देता है। मैंने लाख कोशिश की किन्तु ईश्वर आज तक दिखाई नहीं दिया।’’ युवक ने उत्तर दिया।
महर्षि रमण ने पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे पास दिमाग है।’’
युवक ने उत्तर दिया, ‘‘दिमाग है इसमें भला क्या संदेह हो सकता है।’’
‘‘तो क्या तुम अपने दिमाग को देख सकते हो? मुझे तो तुम्हारा दिमाग दिखाई नहीं दे रहा। क्या मैं यह धारणा बना लूं कि तुम दिमाग से वंचित हो?’’
महर्षि रमण के यह शब्द सुनकर युवक सकपका गया। महर्षि रमण ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘हवा, सुगंध, दुर्गंध इन सबको हम आंखों से नहीं देख सकते हैं परंतु इनकी अनुभूति अवश्य होती है। इसी प्रकार ईश्वर भले ही आंखों से न दिखाई देता हो किन्तु श्रद्धा और विश्वास करने पर पग-पग पर उसकी पावन अनुभूति अवश्य होती है।’’
महर्षि के अकाट्य तर्क ने युवक को नास्तिक से आस्तिक बना दिया। वह उनके आध्यात्मिक विचारों का प्रचार करने लगा। —शिव कुमार गोयल