Edited By Jyoti,Updated: 19 Sep, 2018 04:07 PM
जैसे कि सबको पता है कि गणेशोत्सव की धूम पूरे देश में देखने को मिल रही है। हर जगह भगवान गजानन की धूम-धाम से पूजा हो रही है। हिंदू धर्म में इन्हें प्रथम पूज्य देवता का दर्जा प्राप्त है। इन्हें गजानन भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है हाथी जैसे मुख वाला।
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जैसे कि सबको पता है कि गणेशोत्सव की धूम पूरे देश में देखने को मिल रही है। हर जगह भगवान गजानन की धूम-धाम से पूजा हो रही है। हिंदू धर्म में इन्हें प्रथम पूज्य देवता का दर्जा प्राप्त है। इन्हें गजानन भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है हाथी जैसे मुख वाला। इनके हाथी जैसे मुख के पीछे की पौराणिक कथा तो लगभग सभी जानते होंगे लेकिन गणेश जी को हाथी का मस्तक लगाने के बाद उनका पूर्व मस्तक कहां गया इसके बारे में शायद ही किसी को पता हो?
कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार जब गणेश जी का जन्म हुआ तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए एकत्रित हुए। उस समय शनिदेव भी वहां आ गए। क्योंकि शनि की दृष्टि मंगलकारी नहीं मानी जाती। इसलिए जब शनिदेव ने गणेश का मुख देखा तो उनका मस्तक धड़ से अलग हो गया। माना जाता है कि वह मुख चंद्र मंडल में विलीन हो गया।
दूसरी कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती स्नान कर रही थीं तब गणेश जी पहरा दे रहे थे। उसी दौरान शिवजी का आगमन हुआ। गणेश जी ने शिवजी को अंदर जाने से रोक दिया। क्रोधित होकर शिवजी ने गणेश का मस्तक काट दिया जो बाद में चंद्रलोक चला गया। बाद में उन्हें हाथी का मस्तक लगाया गया। माना जाता है कि गणेश जी का असली मस्तक आज भी चंद्रलोक में ही विद्यमान है। दार्शनिकाें ने गणपति के गजमुख को भी बहुत सुंदर और मंगलकारी माना है। कहते हैं कि गजमुख में सफलता के कई सूत्र छिपे हैं। गणपति के दर्शन करने से मन को प्रसन्नता प्राप्त होती है।
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