कैसे एक असुर के नाम पर पड़ा जालंधर शहर का नाम ?

Edited By Lata,Updated: 06 Nov, 2019 04:50 PM

religious story of tulsi and jalandhar

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर तुलसी विवाह की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

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कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर तुलसी विवाह की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस साल ये दिन 8 नवंबर दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम के साथ किया जाता है। कहते है कि इसी दिन ही भगवान विष्णु अपनी चार माह की निद्रा से जागते हैं और साथ ही सारे शुभ कामों की शुरूआत हो जाती है। आज हम आपको वृंदा देवी से जुड़ी एक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। 
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श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण के अनुसार जलंधर जोकि एक असुर था, किंतु वे शिव का अंश था और उसे इस बात का पता नहीं था। जलंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था। इंद्र को पराजित कर जलंधर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था। यहां तक कि यमराज भी उससे डरते थे। ऐसा माना जाता है कि जलंधर में अपार शक्ति थी और उसकी शक्ति का कारण थी उसकी पत्नी वृंदा। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। जलंधर को इससे अपने शक्तिशाली होने का अभिमान हो गया और वह वृंदा के पतिव्रत धर्म की अवहेलना करके देवताओं के विरुद्ध कार्य कर उनकी स्त्रियों को सताने लगा।

जलंधर को मालूम था कि ब्रहांड में सबसे शक्तिशाली कोई है तो वे हैं देवों के देव महादेव। जलंधर ने खुद को सर्वशक्तिमान रूप में स्थापित करने के लिए क्रमश: पहले इंद्र को परास्त किया और त्रिलोकाधिपति बन गया। इसके बाद उसने विष्णु लोक पर आक्रमण किया। जलंधर ने विष्णु को परास्त कर देवी लक्ष्मी को विष्णु से छीन लेने की योजना बनाई। इसके चलते उसने बैकुण्ठ पर आक्रमण कर दिया, लेकिन देवी लक्ष्मी ने जलंधर से कहा कि हम दोनों ही जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हम भाई-बहन हैं। देवी लक्ष्मी की बातों से जलंधर प्रभावित हुआ और लक्ष्मी को बहन मानकर बैकुण्ठ से चला गया।
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इसके बाद उसने कैलाश पर आक्रमण करने की योजना बनाई और अपने सभी असुरों को इकट्ठा किया और कैलाश जाकर देवी पार्वती को पत्नी बनाने के लिए प्रयास करने लगा। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और तब महादेव को जलंधर से युद्ध करना पड़ा, लेकिन वृंदा के सतीत्व के कारण भगवान शिव का हर प्रहार जलंधर निष्फल कर देता था। अंत में देवताओं ने मिलकर योजना बनाई और भगवान विष्णु जलंधर का वेष धारण करके वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति जलंधर समझकर उनके साथ पत्नी के समान व्यवहार करने लगी। इससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जलंधर का वध कर दिया।

विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किए जाने पर वृंदा ने आत्मदाह कर लिया, तब उसकी राख के ऊपर तुलसी का एक पौधा जन्मा। तुलसी देवी वृंदा का ही स्वरूप है जिसे भगवान विष्णु लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय मानते हैं।
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भारत के पंजाब प्रांत में वर्तमान जालंधर नगर जलंधर के नाम पर ही है। जालंधर में आज भी असुर राज जलंधर की पत्नी देवी वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। मान्यता है कि यहां एक प्राचीन गुफा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। 

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