ऐसे करें अपने कुंडली के दोषों को दूर, सरल होगा जीवन

Edited By Jyoti,Updated: 03 Mar, 2021 04:56 PM

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यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में गुरु लगन में हो तो गुरु पूर्वजों की आत्माओं का आशीर्वाद या दोष दर्शाता  है। जातक के द्वारा अकेले में या पूजा करते समय इन आत्माओं

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यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में गुरु लगन में हो तो गुरु पूर्वजों की आत्माओं का आशीर्वाद या दोष दर्शाता  है। जातक के द्वारा अकेले में या पूजा करते समय इन आत्माओं की उपस्थिति का आभास भी होता है। ऐसे व्यक्ति को अमावस्या एवं ग्रहण के समय दूध का दान करना चाहिए।

यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में गुरु द्वितीय भाव या अष्टम भाव का हो तो व्यक्ति पूर्व जन्म में बहुत बड़ा संत प्रकृति का ज्ञानी पुरुष रहा होगा और कुछ अतृप्त इच्छाएं पूर्ण न होने के कारण उसे फिर से जन्म लेना पड़ा है। ऐसे व्यक्ति पर अदृश्य प्रेतात्माओं के आशीर्वाद रहते हैं। अच्छे कर्म करने तथा धार्मिक प्रवृत्ति से जातक की समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं। ऐसे व्यक्ति सम्पन्न घर में जन्म लेते हैं और उत्तराद्र्ध में धार्मिक प्रवृत्ति से पूर्ण जीवन बिताते हैं। उनका जीवन साधारण परन्तु सुखमय होता है अंत में मोक्ष भी प्राप्त कर लेते हैं।

यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में गुरु तीसरे या छठे भाव में हो तो जातक के पूर्वजों में (माता या पिता के परिवार वालों में) कोई  सती हुई है और उसके आशीर्वाद से जातक का जीवन सुखमय व्यतीत होता है, परन्तु श्रापित होने पर शारीरिक कष्ट, आॢथक एवं मानसिक परेशानियों से जीवनयापन होता है। कुल देवी या माता भगवती की आराधना से ऐसे व्यक्तियों को लाभ मिलता है।

किसी जातक की जन्मकुंडली में गुरु चतुर्थ भाव स्थान में होने पर जातक के रूप में पूर्वजों में से किसी ने वापस आकर जन्म लिया है। पूर्वजों के आशीर्वाद से ऐसे जातक का जीवन आनंदमय होता है और श्रापित होने पर ऐसे जातक परेशानियों से ग्रस्त होते हैं। उन्हें हमेशा भय बना रहता है। ऐसे व्यक्ति को वर्ष में एक बार पूर्वजों के स्थान पर जाकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए और अपने मंगलमय जीवन की कामना करनी चाहिए।

किसी जातक की जन्मकुंडली में गुरु पंचम भाव या नवम भाव में होने से जातक के ऊपर बुजुर्गों (पूर्वजों) का साया हमेशा मदद करता रहता है। ऐसे व्यक्ति माया के त्यागी एवं संत समान विचारों से ओत-प्रोत रहते हैं।  ज्यों-ज्यों जातक की आयु बढ़ती है, त्यों-त्यों जातक ब्रह्म ज्ञानी बनता चला जाता है। ऐसे व्यक्ति का श्राप (बद्दुआ) भी अक्सर असर (प्रभाव) देता है अर्थात  श्राप का बुरा प्रभाव नहीं होता।

किसी जातक की जन्मकुंडली में गुरु सप्तम भाव या दशम भाव में होने पर जातक पूर्व जन्म के संस्कार से संत-प्रवृत्ति, धार्मिक विचार एवं भगवान पर अटूट श्रद्धा रखने वाला होता है। यदि दशम, नवम एवं एकादश भाव में शनि या राहू हों तो ऐसा व्यक्ति बहुत बड़ा संत होता है अथवा धार्मिक स्थल या न्यास का पदाधिकारी होता है। दुष्ट प्रवृत्ति के कारण बेईमानी, झूठ एवं भ्रष्ट तरीके से जातक आॢथक उन्नति तो करता ही है, परन्तु अंतिम समय में ईश्वर के प्रति पूर्णरूपेण समॢपत हो जाता है।

अगर किसी जातक की जन्मकुंडली में शनि या राहू तीसरे भाव या छठे भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति को अदृश्य प्रेतात्माएं भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास करवाने में मदद  करती हैं। ऐसे व्यक्ति जमीन संबंधी कार्य (घर, जमीन के नीचे क्या है) ऐसा ज्ञान प्राप्त करने में सफल होते हैं।  ये लोग कभी-कभी अकारण भय से पीड़ित हो जाते हैं।

किसी जातक की जन्मकुंडली में गुरु ग्यारहवें भाव में होने से जातक पूर्व जन्म में तंत्र-मंत्र एवं गुप्त विद्याओं का जानकार रहा होगा। ऐसा जातक इस जन्म में मानसिक अशांति से युक्त होता है।  कुछ गलत कार्य करने के कारण दूषित प्रेतात्माएं जातक एवं उसके परिवार वालों के पारिवारिक सुख में व्यवधान डालती रहती हैं। राहू की युती से जातक को विशेष परेशानियों का सामना करना पड़ता है।  ऐसे व्यक्तियों को माता आद्या काली की आराधना करनी चाहिए और संयम से जीवनयापन करना चाहिए।

यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में बारहवें भाव में गुरु के साथ शनि, राहू का योग हो तो ऐसे व्यक्ति ने पूर्व जन्म में धार्मिक स्थान (मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा इत्यादि को) नष्ट किया होगा, जिसे उसको इस जन्म में पूरा करना है। ऐसे व्यक्ति का अदृश्य अच्छी आत्माओं गुप्त रूप से साथ देती हैं और इन्हें धार्मिक प्रवृत्ति से लाभ भी होता है। गलत खान-पान  के तरीकों के कारण ऐसे व्यक्ति को अनेक परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है।

यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में शनि लग्र में हो तो ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्मों में अच्छा वैद्य या पुरानी वस्तुओं, जड़ी-बूटियों, गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता अवश्य रहा होगा।  ऐसे व्यक्ति को अच्छी आत्माएं अदृश्य रूप से सहायता करती। इनका बचपन बीमारी या आॢथक परेशानीपूर्ण होता है। ऐसे जातक उस मकान में निवास करते हैं, जहां पर प्रेतात्माओं का निवास होता है। उनकी (प्रेतात्माओं की) पूजा-अर्चना करने से ऐसे व्यक्ति को लाभ होता है।

यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में शनि दूसरे भाव में हो तो ऐसा व्यक्ति पूर्व जन्म में किसी व्यक्ति को अकारण सताने (या दुष्ट आत्माओं को कष्ट देने के कारण) उनकी बद्दुआ (श्राप) के कारण आर्थिक, शारीरिक, पारिवारिक परेशानियां भोगता है। राहू का संबंध द्वितीय भाव से होने पर ऐसा जातक निद्रा रोग, डरावने सपनों से चौंकने वाला होता है। किसी प्रेतात्मा की छाया  अदृश्य रूप से उसके प्रत्येक कार्य में रुकावट डालती है। ऐसे व्यक्ति मानसिक रूप से काफी परेशान रहते हैं।
 

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