Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Dec, 2017 02:42 PM
यदि परिस्थितियां अनुकूल न हों तो भगवान को दोष न दो। अपना ही निरीक्षण करो। यदि जरा गइराई में जाआेगे तो तुम्हें स्वयं ही अपनी कठिनाइयों का कारण ज्ञात हो जाएगा।
क्रोधी का मित्र नहीं हो सकता, ईर्ष्यालु का पड़ोसी नहीं हो सकता और प्रेमी का शत्रु नहीं हो...
यदि परिस्थितियां अनुकूल न हों तो भगवान को दोष न दो। अपना ही निरीक्षण करो। यदि जरा गइराई में जाआेगे तो तुम्हें स्वयं ही अपनी कठिनाइयों का कारण ज्ञात हो जाएगा।
क्रोधी का मित्र नहीं हो सकता, ईर्ष्यालु का पड़ोसी नहीं हो सकता और प्रेमी का शत्रु नहीं हो सकता।
सत्य में हजार हाथियों का बल है। विश्वास के साथ अपने सत्य पर अडे़ रहो।
शरारती बच्चे की भांति जब तुम माया की अग्रि में हाथ डालते हो तो परमात्मा तुम्हें दुख की चपेट लगाता है।
मंथरा की कुबुद्धि के कारण राम वनवास गए थे। इसी प्रकार मन की कुबुद्धि के कारण तुम्हारा राम भी वनवास चला गया है।
करेले की कड़वाहट हटाने के लिए नमक-पानी से धोते हैं, फिर इस्तेमाल करते हैं। मन की कड़वाहट को हटाने के लिए ज्ञान का नमक व प्रेम का पानी इस्तेमाल करो।
सत्संग में आते-आते तुम रट्टू तोता बनकर गुरु का ज्ञान तो बहुत बांट लेते हो पर अपनी कथनी, करनी और रहनी एक जैसी नहीं बनाते इसलिए पीठ पीछे लोग तुम्हारी निंदा ही करेंगे।
बारीक कीडे़ निकालने के लिए तेज नजर चाहिए। एेसे ही बारीक वासनाआें को निकालने के लिए गुरु सूक्ष्म नजर बनाता है।
किसी जिज्ञासु ने सुकरात से पूछा, ‘‘दीपक तले अंधेरा क्यों है और चंद्रमा के मुख पर कलंक क्यों है?’’
सुकरात ने पलटकर प्रश्न किया, ‘‘तुमने यह क्यों नहीं पूछा कि दीपक में ज्योति और चंद्रमा में चांदनी क्यों है?’’
जिज्ञासु शांत हो गया तो सुकरात ने कहा, ‘‘हमारा दृष्टिकोण गुणों के खोजने का होना चाहिए न कि दूसरों के दोष निकालने का।’’