Sawan Monday: आज अधिक मास के आखिरी सोमवार करें इस स्त्रोत्र का पाठ, भोलेबाबा पूरी करेंगे हर मुराद

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Aug, 2023 11:07 AM

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Sawan Monday: आज 14 अगस्त को सावन माह के छठे सोमवार का व्रत रखा जाएगा और ये अधिक मास का आखिरी सोमवार होगा। सोमवार के इस पावन दिन पर

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Sawan Monday: आज 14 अगस्त को सावन माह के छठे सोमवार का व्रत रखा जाएगा और ये अधिक मास का आखिरी सोमवार होगा। सोमवार के इस पावन दिन पर महादेव की खास कृपा अपने भक्तों पर बनी रहती है। ऐसे में जो भी उनकी पूजा करता है, उसके भंडार हमेशा भरे रहते हैं। भोले भंडारी अपने नाम की तरह बहुत ही भोले हैं, उन्हें प्रसन्न करना मुश्किल नहीं है। छोटे-छोटे उपाय द्वारा ही उनका आशीर्वाद पाया जा सकता है। इसके अलावा अगर ज्यादा उपाय नहीं कर सकते तो शिव रुद्राष्टकम स्त्रोत का पाठ करना बहुत फलदायी माना गया है। इसका पाठ करने से भगवान खुश होकर अपने उपासकों की झोलियां भर देते हैं। रामचरित मानस में भी रुद्राष्टकम स्त्रोत्र के पाठ का वर्णन मिलता है। तो चलिए जानते हैं, रुद्राष्टकम स्त्रोत के बारे में।

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रुद्र शब्द का अर्थ है भगवान शिव की अभिव्यक्ति और अष्टकम का अर्थ है आठ छंदों का संगठित संग्रह। यह पाठ तुलसीदास जी द्वारा रचित हिंदी के महाकाव्य रामचरितमानस, उत्तरकांड (107वां दोहा या दोहा) में लिखित है।

अच्छा स्वास्थ्य, मानसिक शांति और समृद्ध बनने की इच्छा रखने वालों को प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। रुद्राष्टकम स्त्रोत का पाठ करने से आपके सभी शत्रुओं का नाश हो जाएगा। वो न तो आज और न ही भविष्य में कभी आपके सामने सिर उठा पाएंगे। मान्यता है की रावण पर चढ़ाई करने से पहले भगवान श्रीराम ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना कर रूद्राष्टकम स्तुति का पाठ किया था। भोले बाबा की कृपा से रावण पर उन्होंने विजय प्राप्त की थी।

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Rudrashtakam Path of Lord Shiva शिव जी का रुद्राष्टकम स्त्रोत

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥

जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥

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