Edited By Lata,Updated: 11 Mar, 2020 01:27 PM
हिंदू धर्म में ऐसे कई व्रत व त्योहार मनाए जाते हैं, जिनका अपने आप में एक खास महत्व होता है। ऐसे में माता
Follow us on Twitter
Follow us on Instagram
हिंदू धर्म में ऐसे कई व्रत व त्योहार मनाए जाते हैं, जिनका अपने आप में एक खास महत्व होता है। ऐसे में माता शीतला का पर्व बहुत ही पौराणिक है और इसे देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है। लेकिन ये हर कोई अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार मनाते हैं, जैसे कि ये पर्व किसी स्थान पर माघ शुक्ल की षष्ठी को, कहीं-कहीं वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो कोई चैत्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाते हैं। कहते हैं कि इस दिन व्रत करने वाले को माता का आशीर्वाद मिलता है और घर में बरकत भी बनी रहती है। शास्त्रों के अनुसार शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं। इस साल ये व्रत 15 मार्च को किया जाएगा।
महत्व
बता दें कि ये त्योहार विशेषकर चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी-अष्टमी के दिन मानाया जाता है और इसे बसौरा या बसौड़ भी कहते हैं। बसोरा का अर्थ है बासी भोजन। शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता और इस दिन बासी भोजन किया जाता है। इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख देते हैं। फिर दूसरे दिन प्रात:काल महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन करने के बाद घर के सब व्यक्ति बासी भोजन को खाते हैं। एक बात का ध्यान हर किसी को रखना चाहिए कि जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।
हिंदू व्रतों में केवल शीतलाष्टमी का व्रत ही ऐसा है जिसमें बासी भोजन किया जाता है। इसका विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता है। शीतला माता का मंदिर वटवृक्ष के समीप ही होता है। शीतला माता के पूजन के बाद वट का पूजन भी किया जाता है। ऐसी प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती है, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्णकर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं।