पितृदोष होने पर भाग्यशाली होते हुए भी भाग्यहीन रहना पड़ता है, ये हैं संकेत

Edited By Updated: 09 Sep, 2017 08:51 AM

signs of pitra dosh

श्राद्ध का अर्थ है, पितृों के लिए उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किया गया दान। श्राद्धकर्म में होम, पिंडदान एवं तर्पण आदि सम्मिलित हैं। मृतात्मा की शांति के लिए जिन संस्कारों का विधान है,

श्राद्ध का अर्थ है, पितृों के लिए उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किया गया दान। श्राद्धकर्म में होम, पिंडदान एवं तर्पण आदि सम्मिलित हैं। मृतात्मा की शांति के लिए जिन संस्कारों का विधान है, उन्हें श्राद्धकर्म कहा जाता है। मृत्यु के बाद दशरात्र और षोडशी-संपिंडन तक मृत व्यक्ति प्रेत कहलाता है। संपिंडन के उपरांत वह पितरों में शामिल हो जाता है। हमारे पूर्वजों को, पितृों को जब मृत्यु के पश्चात भी शांति नहीं मिलती, वे इसी लोक में भटकते रहते हैं तो हमें पितृदोष लगता है। यदि हम उनके लिए श्राद्ध, कर्म-कांड आदि नहीं करेंगे तो उनको पुण्य लाभ और शांति प्राप्त नहीं होगी और वे कुपित होकर हमारे सामने भी परेशानियां खड़ी कर सकते हैं। अत: आवश्यक है कि हमें पितृदोष से मुक्त होना ही चाहिए।


कुंडली में ग्रह दोषों के कारण भी पितृशाप का भागीदार बनना पड़ सका है। बृहस्पति द्वादशेश हो और द्वादश भाव पर बुध ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो, तब बालक को उस कुल में अपने बुजुर्गों द्वारा पितरों का सत्कार न करने से कष्ट प्राप्त होता है।


कुल पितृदोष ग्रस्त रहने पर पूर्वजों द्वारा पितर ऋण न चुकाने पर बालक अपंग पैदा होता है। यदि राहू की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा तथा चंद्रमा की प्रत्यंतर दशा में चल रही हो तब जातक को पितृदोष से व्यापक कष्ट उठाना पड़ता है। सूर्य लग्र वाली कुंडली में लग्नेश बुध द्वित्तीय भाव पर, लग्नेश गुरु, तृतीय व षष्ठ भाव पर और शुक्र दशम भाव पर केतु या मंगल से युत हो तब जातक को भाग्यशाली होते हुए भी भाग्यहीन रहना पड़ता है।


सूर्येश व चंद्रेश द्वादश भाव में साथ-साथ युत हों और द्वादशेश लग्र में स्थित हो तब जातक को गृह श्राद्ध करने के बावजूद भी पितृदोष का सामना करना पड़ेगा। पितृदोष लगने पर निम्र में से कोई न कोई परेशानी जीवन में बनी ही रहती है-


1. संतान न होना, 2. वंश न चलना, 3. धन की निरंतर हानि होना, 4. घर में झगड़ा रहना, 5. मानसिक अशांति बनी रहना, 6. भूत-प्रेत बाधा का न हटना, 7. दरिद्रता घर में बनी रहना, 8. मुकद्दमे में उलझे रहना, 9. निरंतर घर में किसी का बीमार रहना, 10. कन्या का विवाह न होना।


अत: श्राद्ध द्वारा पितृदोष को शांत करना चाहिए और जीवन में आ रही बाधाओं से मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए। 
 

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