Smile please: मोक्ष की इच्छा रखना माया है, पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Jan, 2024 09:37 AM

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इस बात से कोई भी इंकार नहीं करेगा कि हमारा देश आज कोरे उपदेशकों का देश बन गया है। कहा जाता है कि प्रत्येक भारतीय जन्मजात दार्शनिक होता है, इसीलिए पैदा होने के साथ ही उसे दर्शन-शास्त्र की घुट्टी पिलाई जाती है,

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Smile please: इस बात से कोई भी इंकार नहीं करेगा कि हमारा देश आज कोरे उपदेशकों का देश बन गया है। कहा जाता है कि प्रत्येक भारतीय जन्मजात दार्शनिक होता है, इसीलिए पैदा होने के साथ ही उसे दर्शन-शास्त्र की घुट्टी पिलाई जाती है, तभी तो भारत के बच्चे भी दार्शनिक विषयों पर सहजता से वार्तालाप कर सकते हैं। लेकिन फिर भी आज जितना नैतिक और आध्यात्मिक पतन भारतवासियों का हुआ है, उतना शायद ही किसी देश के नागरिकों का हुआ होगा।

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आज कोने-कोने में धर्मस्थल बन रहे हैं, फिर भी देश दिनों-दिन पतन के गर्त में गिरता जा रहा है। क्या आपने कभी विचार किया है कि ऐसा क्यों है ? ऐसा इसलिए हैं क्योंकि तोते की तरह विद्वानों के महान उपदेशों और दार्शनिक सिद्धांतों को लोगों ने रट तो लिया है, लेकिन व्यावहारिक जीवन में उनकी कुछ भी अनुभूति नहीं कर रहे।
 
एक दिन बाजार में चलते-चलते एक व्यक्ति की नजर किसी दुकान के भीतर रखे हुए एक सुनहरे पिंजरे में बैठे तोते पर पड़ी। उसने देखा तोता बड़े मजे से स्वादिष्ट भोजन खा रहा था पर बीच-बीच में जोर-जोर से ‘मुक्ति-मुक्ति’ की रट भी लगाए जा रहा था। यह देख उस व्यक्ति को बड़ा आश्चर्य हुआ कि यह कैसा कैदी है जो कैदखाने में आनंदपूर्वक भोजन भी कर रहा है और साथ ही साथ मुक्त होने की पुकार भी लगा रहा है।
 
करुणा के वशीभूत होकर उसने दुकान के अंदर जाकर तोते को आजाद करने के ख्याल से पिंजरे का दरवाजा खोल दिया। परंतु दरवाजा खुलते ही तोते ने एक बार खुले दरवाजे की तरफ दृष्टि उठाई और फिर वापस अपना भोजन कुतरने लगा और फिर से पहले की ही तरह बीच-बीच में  ‘मुक्ति-मुक्ति’ की रट लगाए जा रहा था।
 
यह दृश्य देख उस व्यक्ति के आश्चर्य की सीमा न रही और फिर उसने जबरदस्ती तोते को पकड़कर बहार निकाला और मुक्त आकाश में छोड़ दिया, लेकिन वह असीम गगन में स्वतंत्रता-पूर्वक विचरण करने की बजाय फिर से आकर पिंजरा पकड़ कर बैठ गया और फिर वही ‘मुक्ति-मुक्ति’ की रट लगाने लगा।

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यह सारा दृश्य बड़े मजे से देख रहे दुकानदार ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाया और हंसते हुए कहा कि ‘मुक्ति-मुक्ति’ यह तोते के अंतरात्मा की पुकार नहीं है बल्कि मेरा सिखाया हुआ शब्द-जाल है, जिसका उसकी चाह से कोई भी संबंध नहीं है।  

इस कथा पर हमें गंभीरतापूर्वक यह सोचना चाहिए की तोते के इस आचरण पर क्या कुछ भी आश्चर्य करने की आवश्यकता है ? क्या आज के मनुष्यों का आचरण भी उस तोते-जैसा नहीं है ? बल्कि क्या मनुष्यों का आचरण उस तोते से भी अधिक आश्चर्यजनक नहीं है ?
 
आज लाखों मनुष्य प्रतिदिन भगवान से मुक्ति के लिए करबद्ध प्रार्थना करते हैं। यह जानकर भी कि इस शरीर को छोड़ने के बाद ही तो मुक्ति मिल सकती है, फिर भी हम उसके लिए प्रार्थना करते रहते हैं और मन ही मन मृत्यु के नाममात्र से कांपते भी रहते हैं।
 
इसी प्रकार अनेक मनुष्य प्रतिदिन भगवान से यह प्रार्थना करते हैं कि हमारे कर्म-बंधन की जंजीरों को काटो, लेकिन जंजीरों की एक कड़ी भी टूटने पर, अपने एक भी निकट संबंधी के शरीर छोड़ने पर वे भगवान पर क्रोधित हो जाते हैं और उनको अपशब्द बोलना शुरू कर देते हैं। भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हमें पंच विकारों से छुड़ाओ, लेकिन वे विकारों से उतना ही चिपटे रहते हैं जितना तोता पिंजरे से।
 
समझदार वही है जो मुक्ति-मुक्ति करने के बजाय अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन कर खुद ही अपने को मुक्त करेगा और अन्यों को भी मुक्त होने में सहयोगी बनेगा।

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