देश की ‘फिजा’ में नकारात्मकता का ज़हर

Edited By Jyoti,Updated: 30 Nov, 2019 12:22 PM

special write up on ayodhya ram mandir

ऐसा लगने लगा था कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद यह विवाद पूरी तरह खत्म हो गया है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा होता नहीं दिख रहा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के हक में जाने के बाद आल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड ने इस मसले पर...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
ऐसा लगने लगा था कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद यह विवाद पूरी तरह खत्म हो गया है लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा होता नहीं दिख रहा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के हक में जाने के बाद आल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड ने इस मसले पर अभी तक अपना रुख नर्म नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने घोषणा की है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जाएगी तथा उन्हें किसी और जगह मस्जिद मंजूर नहीं है। बोर्ड का तर्क है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में माना है कि विवादित भूमि पर नमाज पढ़ी जाती थी और गुंबद के नीचे जन्म स्थान होने के कोई प्रमाण नहीं हैं तो कई मुद्दों पर फैसले समझ के परे हैं। बोर्ड का मानना है कि हमने विवादित भूमि के लिए लड़ाई लड़ी थी इसलिए वही जमीन चाहिए। बोर्ड ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी और जमीन के लिए न हमने लड़ाई लड़ी थी, न ही हमें कोई पर्यायी जमीन चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि पूरे देश का मुसलमान बोर्ड के इस फैसले से इत्तेफ़ाक रखता हो लेकिन बोर्ड को अपनी साख और राजनीति की पड़ी है।
PunjabKesari,Dharam, Ayodhya ram mandir, Ayodha Ram Temple, Orchha ram temple, Ayodha Verdict, Ayodhya, अयोध्या, Dharmik Sthal, Religious Place in india, hindu teerth Sthal
अगर बात रिव्यू पटीशन की है तो अभी से उसके खिलाफ आवाजें उठने लगी हैं। चिंता की बात यह है कि मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों के साथ-साथ यह आवाज अखिल भारतीय हिंदू महासभा जैसे संगठनों की तरफ से भी उठ रही है, जिसका कहीं न कहीं नकारात्मक असर मुस्लिम समाज पर पडऩा ही है और यह मौका उन्हें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ही दे रहा है। मुसलमानों के लिए यह अच्छी-खासी शॄमिंदगी का कारण बन सकता है।

अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अनुसार मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अयोध्या विवाद में पक्षकार नहीं है इसलिए उसे सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का अधिकार ही नहीं है। महासभा का तर्क है कि केवल मामले से संबंधित पक्षकार ही पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में पार्टी नहीं है। इस मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड पक्षकार है और पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के बारे में केवल वही फैसला ले सकता है।

फांसी की सजा पाए व्यक्ति को भी राष्ट्रपति के समक्ष माफी की गुहार का अधिकार है
एक बात तो सच है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्यायिक प्रक्रिया के तहत रिव्यू पटीशन के जरिए चुनौती दी जा सकती है। इसे गलत कहना न्यायिक प्रक्रिया और संवैधानिक अधिकारों का अपमान कहा जाएगा। फांसी की सजा पाए व्यक्ति को भी राष्ट्रपति के समक्ष माफी की गुहार का अधिकार है और वह करता भी है। मुस्लिम समाज को भी रिव्यू पटीशन दाखिल करने का पूरा अधिकार है, यह बात भी सही है लेकिन क्या यह अधिकार मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को है? सही मायने में यह अधिकार सुन्नी वक्फ बोर्ड या हाशिम अंसारी के पुत्र इकबाल अंसारी को है जो अयोध्या मामले में पक्षकार रहे हैं। हां, अगर ये दोनों पक्ष भी एकमत से मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड को यह अधिकार देते कि वह उनकी नुमाइंदगी करे तो बात अलग है लेकिन सुन्नी वक्फ बोर्ड और इकबाल अंसारी इस मामले को और ज्यादा खींचने के पक्ष में ही नहीं हैं। वह भी इसलिए कि फैसले को स्वीकार करने का वादा कर उससे मुकरने से देश के बहुसंख्यक वर्ग में अविश्वास पैदा होगा।
PunjabKesari, मस्जिद, Mosque
मुसलमानों की इबादतगाह को मस्जिद कहते हैं
बात अगर मस्जिद की की जाए तो यह जान लेना जरूरी है कि मुसलमानों की इबादतगाह को मस्जिद कहते हैं। मस्जिद का शाब्दिक अर्थ है 'प्रणाम’ करने की जगह। दुनिया भर में कुल मिलाकर हिंदुस्तान अकेला गैर इस्लामिक मुल्क है जहां सबसे ज्यादा मस्जिदें हैं। एक अनुमान के मुताबिक हिंदुस्तान में तीन लाख मस्जिदें हैं। इतनी मस्जिदें संसार के किसी भी देश या इस्लामी मुल्कों तक में नहीं हैं। अव्वल तो मस्जिद ऐसी जगह पर बनाई जाती है, जहां कोई विवाद न हो। मस्जिद में लगने वाली रकम हलाल कमाई की हो। कब्जा की हुई जमीन पर मस्जिद का बनना दुरुस्त नहीं। पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब ने भी इसकी सख्त मुमानियत की है। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने मस्जिद-ए-जिरार को अपवित्र मानते हुए अपने अनुयायियों को ऐसी मस्जिद से किसी भी तरह का संबंध नहीं रखने और उसे तोड़ने की हिदायत दी थी, जहां से नकारात्मकता फैलती हो। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने उस मस्जिद में न तो नमाज पढ़ाने का न्यौता स्वीकार किया और न ही अपने मानने वालों को उस मस्जिद में नमाज पढऩे के लिए कहा। आखिर वह इमारत भी तो मस्जिद के नाम पर ही निर्माण की गई थी। इस्लामी इतिहास की ऐसी ही एक अन्य घटना का जिक्र लेखक अल्लामा युसूफ करजावी और अबू मसऊद अजहर नदवी ने अपनी किताब ‘इस्लाम, मुसलमान और गैर मुस्लिम’ में किया है।

किताब के अनुसार उमवी खलीफा वलीद बिन अब्दुल मालिक ने ईसाइयों के यूहन्ना गिरजाघर को मस्जिद में शामिल कर लिया था। कुछ साल बाद जब हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज खलीफा बनाए गए, तब ईसाइयों ने उनसे इस मामले की शिकायत की। खलीफा ने तुरंत अपने गवर्नर को पत्र लिखा कि मस्जिद का वह हिस्सा ईसाइयों को वापस किया जाए। पुस्तिका में कहा गया है कि उलेमा और मुस्लिम धर्मविधान के ज्ञाता की राय में कुरान और हदीस के अनुसार किसी कब्जे वाली जमीन पर मस्जिद बनाना जायज नहीं है, चाहे वह किसी मुस्लिम समुदाय के लोगों की क्यों न हो? इस्लाम के अनुसार ऐसे निर्माण अवैध निर्माण की श्रेणी में आते हैं।
PunjabKesari, मस्जिद, Mosque
जो यह तर्क देते हैं कि मस्जिद एक बार बन जाने पर वह मस्जिद ही कहलाएगी, उन्हें मस्जिद-ए-जिरार और खलीफा हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज के दौर के गिरजाघर वाली मस्जिद के बारे में भी जान लेना चाहिए। नबी और खलीफा ने उन मस्जिदों को सिर्फ इसलिए मस्जिद नहीं माना क्योंकि वहां नकारात्मकता थी। क्या अयोध्या में नकारात्मकता का माहौल बनाकर मस्जिद को अब अपनाना सही होगा? जबकि देश की सर्वोच्च अदालत ने आपको बेदखल कर दिया है। एक प्रतिशत मान भी लें कि आपके साथ गलत हुआ तब भी यहां बात अब कानून की भी नहीं रह जाती। आखिर जुबान की भी कोई कीमत होती है। मुसलमानों ने शुरू से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करने की बात कही थी और अब उससे मुकरते हैं तो देश भर में नकारात्मक संदेश जाएगा। क्या ऐसे में वह मस्जिद लेकर आप मुसलमानों को बहुसंख्यकों की नजरों में इज्जत का मुकाम दे सकेंगे। माहौल बिगाड़ना बड़ा आसान होता है, बनाना बहुत मुश्किल। देश की फिजा में नकारात्मकता का जहर फैलाने में नकारात्मक सोच वालों को बढ़ावा देने से बेहतर है आम मुसलमानों की तरक्की और उनके उत्थान के बारे में सोचा जाए, यही आज के दौर की मांग है। यही हिकमत भी होगी और यही तर्कसंगत भी है।
 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!