Srimad Bhagavad Gita: न केवल देसी बल्कि विदेशी भी हैं श्रीमद्भवद्गीता के दिवाने, जानें इतिहास के झरोखे से गीता रहस्य

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jan, 2024 08:28 AM

srimad bhagavad gita

इतिहास का यह तथ्य उल्लेखनीय है कि सन् 1757 में नवाब सिराजुद्दौला की पराजय हुई और भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का सूत्रपात हुआ था। उन्हीं दिनों इंगलैंड से ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रमुख बन कर रॉबर्ट क्लाइव आया। उसने भारत में अंग्रेजी राज की नींव डाली।

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Srimad Bhagavad Gita: इतिहास का यह तथ्य उल्लेखनीय है कि सन् 1757 में नवाब सिराजुद्दौला की पराजय हुई और भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद का सूत्रपात हुआ था। उन्हीं दिनों इंगलैंड से ईस्ट इंडिया कम्पनी का प्रमुख बन कर रॉबर्ट क्लाइव आया। उसने भारत में अंग्रेजी राज की नींव डाली। 

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जब वह इंगलैंड चला गया, तब कम्पनी ने वारेन हेस्टिंग्स (1732-1818) को बंगाल का गवर्नर जनरल बनाया। वह सन् 1774 से 1785 ई. तक शासक रहा। वह बुद्धिमान, विद्वान साहसी तथा कार्यकुशल था। परिश्रम तथा चतुराई से उसने अंग्रेजी राज को खूब बढ़ाया तथा मजबूत बनाया। वास्तव में भारत में अंग्रेजी राज को जमाने वाला वही था। उसमें स्वदेश प्रेम कूट-कूट कर भरा था। वह विद्या प्रेमी शासक के रूप में विख्यात था। 

18वीं सदी के अंत में ईस्ट इंडिया कम्पनी का एक मुलाजिम चार्ल्स विल्किंस बड़ा ज्ञानी था। उसने निष्ठापूर्वक महाभारत के कुछ अंशों का अनुवाद अंग्रेजी में करके वारेन हेस्टिंग्स को पढ़ने को दिया। गवर्नर साहब को ऐसे काम बहुत पसंद थे। पुन: विल्किन्स ने नवम्बर 1784 ई. में वारेन हेस्टिंग्स के पास ‘श्रीमद्भवद्गीता’ का अनुवाद भेजा। वारेन हेस्टिंग्स अनुवाद देख कर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने एक लम्बा पत्र कम्पनी के कौंसिल के प्रधान मैंबर नथानियल स्मिथ साहब को लिखा। उसमें आपने गीता ग्रंथ की बहुत प्रशंसा की और यह सिफारिश की कि वह ग्रंथ कम्पनी के खर्च से छपाकर प्रकाशित किया जाए।

यह सिफारिश मंजूर हो गई और विल्किन्स का गीतानुवाद मई 1785 ई. में छापा गया। इस अनुवाद के आरम्भ में हेस्टिंग्स का वह पत्र भी छापा गया, जिसमें उन्होंने गीता की समालोचना और उसके गुणों का गान किया था। सच तो यह है कि अच्छी चीज सबको अच्छी लगती है। यह अनुवाद ग्रंथ कलकत्ता (अब कोलकाता) चिड़िया घर के सामने नैशनल लाइब्रेरी (राष्ट्रीय पुस्तकालय) में सुरक्षित है।
उन्होंने गीता की महिमा को खुले दिल से स्वीकार किया और कहा कि शायद ही कोई ऐसी अच्छी पुस्तक उस समय की अन्य भाषाओं के ग्रंथ समुदाय में कोई और हो। उल्लेखनीय है कि गीता भगवान श्रीकृष्ण की वाणी होने से भगवान का स्वरूप है। गीता धर्म ग्रंथ का स्पर्श भी गीता पाठ जैसा ही है। 

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इसमें आत्मा श्रद्धा वह तत्व है, जो मनुष्य को गुप्त आध्यात्मिक शक्तियों का द्वार खोलकर आश्चर्यजनक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ कराता है। भारत के राष्ट्र जीवन में श्रीमद्भगवद्गीता को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

गीता शब्द ग+ई+त+आ से बना है। इसका ‘ग’ जीवन को गायन, पूजन योग्य बनाना सिखाता है। महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत के भीष्म पर्व के 25वें अध्याय से लेकर 42वें अध्याय तक के कुल 18 अध्यायों के 700 श्लोकों के अंतर्गत वेदोपनिषद् के तत्व ज्ञान से परिपूर्ण हैं। कुरुक्षेत्र पुण्यभूमि में योगीराज भगवान श्रीकृष्ण एवं महान जिज्ञासु सव्यसाची (अर्जुन) के आकर्षक संवादों द्वारा किया वार्तालाप ‘श्रीमद्भवद्गीता’ के नाम से विश्व विख्यात है।

सच तो यह है कि श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू शास्त्रों की मुकुटमणि है। गीता के अलौकिक गान पर देश-विदेशों के चिंतक रीझे हैं। वास्तव में गीता तो नित्य जीवनचर्या की चीज है, आचरण की चीज है।

इस जगत विख्यात आध्यात्मिक ग्रंथ पर अनेक विद्वानों ने भिन्न-भिन्न भाषाओं में, भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से विद्वतापूर्ण रचनाएं की हैं। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा कारावास में रचित ‘गीता रहस्य’ के बारे में योगीराज अरविंद ने अपनी अमृतमयी लेखनी से उद्गार व्यक्त करते हुए लिखा है, ‘इसकी विषय वस्तु अर्थात भगवद्गीता भारतीय आध्यात्मिकता का सुमधुर फल है।’ 

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