श्रीमद्भगवद्गीता: क्या है क्षत्रिय का असली ‘धर्म’

Edited By Jyoti,Updated: 28 Mar, 2021 04:12 PM

srimad bhagavad gita in hindi

क्षत्रिय होने के नाते अपने विशिष्ट धर्म का विचार करते हुए तुम्हें जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ कर तुम्हारे लिए अन्य कोई कार्य नहीं है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्या याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता

श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विक पितुमर्हसि।
ध र्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते॥

अनुवाद एवं तात्पर्य : क्षत्रिय होने के नाते अपने विशिष्ट धर्म का विचार करते हुए तुम्हें जानना चाहिए कि धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़ कर तुम्हारे लिए अन्य कोई कार्य नहीं है। अत: तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

क्षत का अर्थ है चोट खाया हुआ और जो क्षति से रक्षा करे वह क्षत्रिय कहलाता है। क्षत्रियों को वन में आखेट करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। क्षत्रिय जंगल में जाकर शेर को ललकारता और उससे आमने-सामने अपनी तलवार से लड़ता था।

शेर की मृत्यु होने पर राजसी ढंग से उसकी अंत्येष्टि की जाती थी। क्षत्रियों को विशेष रूप से ललकारने तथा मारने की शिक्षा दी जाती है क्योंकि कभी-कभी धार्मिक हिंसा अनिवार्य होती है इसलिए क्षत्रियों को सीधे संन्यासाश्रम ग्रहण करने का विधान नहीं है।

वर्णाश्रम धर्म अर्थात प्राप्त शरीर के विशिष्ट गुणों पर आधारित स्वधर्म की अवस्था से मानवीय सभ्यता का शुभारंभ होता है। वर्णाश्रम-धर्म के अनुसार किसी कार्यक्षेत्र में स्वधर्म का निर्वाह करने से जीवन के उच्चतर पद को प्राप्त किया जा सकता है।  (क्रमश:)

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