Edited By Prachi Sharma,Updated: 17 Mar, 2024 08:41 AM
जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है क्योंकि उसने शांति प्राप्त कर ली है। ऐसे पुरुष के लिए सुख-दुख
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जितात्मन: प्रशान्तस्य परमात्मा समाहित:।
शीतोष्णसुखदु:खेषु तथा मानापमानयो:॥6.7॥
अनुवाद एवं तात्पर्य : जिसने मन को जीत लिया है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया है क्योंकि उसने शांति प्राप्त कर ली है। ऐसे पुरुष के लिए सुख-दुख, शीत-ताप एवं मान-अपमान एक से हैं।
वस्तुत: प्रत्येक जीव उस भगवान की आज्ञा का पालन करने के निमित्त आया है, जो जन-जन के हृदयों में परमात्मा रूप में स्थित है। जब मन माया द्वारा विपथ कर दिया जाता है, तब मनुष्य भौतिक कार्यकलापों में उलझ जाता है। अत: ज्यों ही किसी योग पद्धति द्वारा मन वश में आ जाता है, त्यों ही मनुष्य को लक्ष्य पर पहुंचा हुआ मान लिया जाना चाहिए। मनुष्य को भगवद् आज्ञा का पालन करना चाहिए।
जब मनुष्य का मन परा प्रकृति में स्थिर हो जाता है, तो जीवात्मा के समक्ष भगवद् आज्ञा पालन करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता। मन को वश में करने से स्वत: ही परमात्मा के आदेश का पालन होता है।