स्वामी प्रभुपाद: श्री कृष्ण की शक्तियां

Edited By Updated: 01 Dec, 2024 11:52 AM

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पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार, ये आठ प्रकार के विभक्त मेरी भिन्ना (अपरा) प्रकृतियां हैं। ईश्वर-विज्ञान (विद्या) भगवान की स्वाभाविक स्थिति तथा उनकी विविध शक्तियों का विश्लेषण करता है।

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भूमिरापोऽनलो वायुः: खं मनो बुद्धिरेव च।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा॥7.4॥

अनुवाद एवं तात्पर्य :
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि तथा अहंकार, ये आठ प्रकार के विभक्त मेरी भिन्ना (अपरा) प्रकृतियां हैं। ईश्वर-विज्ञान (विद्या) भगवान की स्वाभाविक स्थिति तथा उनकी विविध शक्तियों का विश्लेषण करता है। भगवान के विभिन्न पुरुष अवतारों (विस्तारों) की शक्ति को प्रकृति कहा जाता है। यह भौतिक जगत भगवान की शक्तियों में से एक का क्षणिक प्राकट्य है। इस जगत की सारी क्रियाएं भगवान कृष्ण के इन तीनों विष्णु अंशों द्वारा निर्देशित हैं। ये पुरुष अवतार कहलाते हैं।

सामान्य रूप से जो व्यक्ति ईश्वर तत्व (कृष्ण) को नहीं जानता, वह यह मान लेता है कि यह संसार जीवों के भोग के लिए और सारे जीव पुरुष हैं- भौतिक शक्ति के कारण, नियन्ता तथा भोक्ता हैं।

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भगवदगीता के अनुसार यह नास्तिक निष्कर्ष झूठा है। प्रस्तुत श्लोक में कृष्ण को इस जगत का आदि कारण माना गया है। श्रीमद्भागवत से भी इसकी पुष्टि होती है। इस भौतिक जगत के घटक हैं भगवान की पृथक-पृथक शक्तियां। यहां तक कि निर्वेष्वादियों का चरम लक्ष्य ब्रह्मज्योति भी एक आध्यात्मिक शक्ति है, जो परव्योम में प्रकट होती है। ब्रह्मज्योति में वैसी भिन्नताएं नहीं, जैसी कि वैकुंठ लोकों में हैं, फिर भी निर्वेष्वादी इस ब्रह्म ज्योति को चरम शाश्स्वत लक्ष्य स्वीकार करते हैं।

परमात्मा की अभिव्यक्ति भी क्षीरोदकशायी विष्णु का एक क्षणिक सर्वव्यापी पक्ष है। अध्यात्म जगत में परमात्मा की अभिव्यक्ति शाश्वत नहीं होती। अत: यथार्थ परमसत्य तो श्रीभगवान कृष्ण हैं। वह पूर्ण शक्तिमान पुरुष हैं और उनकी नाना प्रकार की भिन्ना तथा अंतरंगा शक्तियां होती हैं। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, भौतिक शक्ति आठ प्रधान रूपों में व्यक्त होती हैं। इनमें से प्रथम पांच क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर स्थूल अथवा विराट सृष्टियां कहलाती हैं, जिनमें पांच इंद्रियविषय, जिनके नाम हैं शब्द, स्पर्श, रूप, रस तथा गंध सम्मिलित रहते हैं।

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भगवान की आठ विभिन्न शक्तियों से जगत के चौबीस तत्व प्रकट हैं जो नास्तिक सांख्यदर्शन का विषय हैं। वे मूलत: कृष्ण की शक्तियों की उपशाखाएं हैं और उनसे भिन्न हैं किन्तु नास्तिक सांख्य दार्शनिक अल्पज्ञान के कारण यह नहीं जान पाते कि कृष्ण समस्त कारणों के कारण है। जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है, सांख्यदर्शन की विवेचना का विषय कृष्ण की बहिरंगा शक्ति का प्राकट्य है। 

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