सुकुमारता एवं मिलनसारिता की प्रतीक: कर्क राशि

Edited By Jyoti,Updated: 03 Apr, 2018 03:26 PM

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कर्क राशि (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो) राशिचक्र में 90 डिग्री से 120 डिग्री तक के क्षेत्र में स्थित यह चौथी राशि मानी जाती है। इस राशि का चिन्ह कर्कट एक जलचर है। आकाश स्थित नक्षत्रों में पुनर्वसु का एक-चौथाई भाग, पुष्य और आश्लेषा नक्षत्र इस...

कर्क राशि (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
राशिचक्र में 90 डिग्री से 120 डिग्री तक के क्षेत्र में स्थित यह चौथी राशि मानी जाती है। इस राशि का चिन्ह कर्कट एक जलचर है। आकाश स्थित नक्षत्रों में पुनर्वसु का एक-चौथाई भाग, पुष्य और आश्लेषा नक्षत्र इस राशि में स्थित है। कर्क राशि का संबंध प्रधानत: जलीय प्रदेश, समुद्र, नदी अथवा समुद्र तट से अत्यंत निकट का माना गया है।


यह राशि सहानुभूति एवं सुकुमारता के साथ-साथ प्रजासत्ता एवं मिलनसारिता की प्रतीक मानी जाती है। 


यह चंचल लक्षणों से युक्त कोमल, सौम्य परंतु चर स्वभाव की, बाल्यावस्था में प्रखर, रक्त श्वेत वर्ण की, रजोगुणी, जल तत्व युक्त, रात्रिबली, कफ प्रकृति की, स्त्री प्रधान और बहु-संतानयुक्त राशि है। यह अपनी दिशा अर्थात उत्तरा में विशेष बली एवं क्रियाशील रहती है।


इस जलचर सम राशि का निवास-चोल देश, स्वामी-चंद्रमा, वार-सोम तथा भाग्यांक-2 और 7 है। सांसारिक उन्नति में प्रयत्नशील, लज्जा, विवेक इसका प्राकृतिक गुण है। इसका मुख्य अंग स्थान हृदय है, जो वास्तव में केकड़े के आकार जैसा ही होता है। इस राशि के मुख्य द्रव्य-उत्तम प्रकार के अन्न, फल, किराने का सामान, चाय, चांदी और पारा आदि हैं। वाणिज्य एवं जलमार्ग द्वारा माल-असबाब पहुंचाने अथवा जल यातायात एवं नौसेना विभाग विषयक कार्यों का प्रतिनिधित्व भी कर्क राशि ही करती है।


इस राशि के पूर्वी क्षितिज पर उदित होते समय अगर कोई जातक पैदा होता है तो वह मध्यम आकृति का, सुगठित शरीर वाला, गौर वर्ण का, सुंदर मुख, गतिशील, क्रोधी और परिवर्तनशील विचारों का होता हैै। ऐसा जातक बुद्धिमान, उदार, विशाल तथा स्वच्छ हृदय, संपत्तिवान, यात्रा एवं प्रकृति प्रेमी, नवीन प्रकार की जल संबंधी वस्तुओं एवं व्यवसायों में अभिरुचि रखने वाला, विलासी, भावुक हृदय, कल्पनाशील मस्तिष्क, परिश्रमी, न्यायी, समयानुसार काम करने में चतुर, नीति अथवा कानून क्रिया का ज्ञाता, एल.एल.बी. की उपाधि, राजनीतिक क्षेत्रों में सफल, असफल प्रेमी, किंतु स्त्री वर्ग विशेष प्रभावित रहता है।


ऐसा जातक वाचाल, मितव्ययी, देश एवं मातृ प्रेमी होता है। इस लग्न में पैदा होने से भाग्योदयकारक वर्ष 16, 22, 24, 28, 32 एवं 47 होते हैं।


कर्क लग्न में पैदा जातक प्रमुख रूप से जलोत्पन्न वस्तुओं के व्यवसाय अथवा शिक्षा से लाभान्वित हो सकते हैं। बलवान चन्द्रमा वाले जातक राज्याधिकारी, डाक्टर, अनूठी वस्तुओं के संकलनकर्ता, इतिहासकार, राजनेता, मंत्री, प्राध्यापक अथवा नौसेना में कप्तान आदि होते हैं। इसके अतिरिक्त राज्यकर्मचारी जलसैनिक, मल्लाह, विद्वान एवं भाषा विशारदों का प्रतिनिधित्व कर्क लग्न वाले जातक करते हैं।


सूर्य इस राशि में श्रावण मास पर्यन्त रहता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, यह स्थिति 6 जुलाई से 15 अगस्त के मध्य रहती है। इस मास के दौरान पैदा हुए जातकों को सोलर राशि से ‘सन-कैन्सर’ कहा जाएगा। ऐसे जातक अक्सर तीक्ष्ण स्वभाव के, निरुत्साही, जल यात्रा के प्रेमी, चंचल, मितव्ययी और कानून के ज्ञाता होते हैं। इसके अतिरिक्त कर्क मास में पैदा हुए जातक कर्तव्यों को सर्वोपरि मान्यता देने वाले, समानता में विश्वास रखने वाले, प्रसिद्ध, कीर्तियुक्त एवं परोपकारी स्वभाव के होते हैं।


चन्द्रमा की स्थिति इस राशि के दो पक्षों में सवा-दो दिन के लिए एक बार होती है। इसके प्रभाव में जन्मे जातक अधिकांशत: साधु स्वभाव के, शीलवान, शुद्धचित्त, काव्य प्रकृति एवं भ्रमण प्रेमी, वक्ता, पर-देशप्रिय, भवनों के स्वामी तथा घरेलू कार्यों में निपुण होते हैं। ऐसे जातक चंद्रमा के विशेष प्रभाव के कारण कामान्ध एवं उन्मादी भी हो जाते हैं और अधिकांशत: कर्क जातक संशयी स्वभाव के होते हैं। पुरातत्व, लेखन एवं ज्योतिष में भी उनकी रुचि होती है। कठिन परिस्थितियों में ऐेसे जातकों को किसी स्त्री विशेष से सहायता प्राप्त होती है।

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