Edited By Lata,Updated: 14 Jun, 2019 11:07 AM
कहते हैं कि पुण्य की प्राप्ति के लिए हर व्यक्ति कोई न कोई ऐसा काम करता है, जिससे कि उसके पाप कम हो सके।
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कहते हैं कि पुण्य की प्राप्ति के लिए हर व्यक्ति कोई न कोई ऐसा काम करता है, जिससे कि उसके पाप कम हो सके। जैसे कि दान, पूजा-पाठ और तीर्थ यात्रा। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि अगर पुण्य कमाना है तो तीर्थ यात्रा अवश्य करनी चाहिए। तीर्थ यात्रा का मुख्य उद्देश्य होता है पुण्य फल कमाना। लेकिन कुछ पौराणिक तथ्य बताते हैं कि तीर्थ यात्रा का फल किसे मिलता है और किसे नहीं, तो आइए जानते हैं इसके बारे में।
तीर्थ क्षेत्र में जाने पर मनुष्य को स्नान, दान, जप आदि करना चाहिए, अन्यथा वह रोग एवं दोष का भागी होता है।
अन्यत्र हिकृतं पापं तीर्थ मासाद्य नश्यति। तीर्थेषु यत्कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति।
अर्थात् अन्य जगह किया हुआ पाप तीर्थ में जाने से नष्ट हो जाता है, पर तीर्थ में किया हुआ पाप कभी नष्ट नहीं होता है।
जब कोई अपने माता-पिता, भाई, परिजन अथवा गुरु को फल मिलने के उदेश्य से तीर्थ में स्नान करता है तब उसे स्नान के फल का बारहवां भाग प्राप्त हो जाता है।
जो दूसरों के धन से तीर्थ यात्रा करता है। उसे पुण्य का सौलहवां भाग प्राप्त होता है और जो दूसरे कार्य के प्रसंग से तीर्थ में जाता है उसे उसका आधा फल प्राप्त होता है।
तीर्थ यात्रा का पूर्ण फल तभी मिलता है जब आपने किसी भी आत्मा को जाने-अनजाने में कष्ट न पहुंचाया हो। आपका आचार, विचार, आहार, व्यवहार और संस्कार शुद्ध और पवित्र हो।