शास्त्रों से जानें, हमारा देश ‘भारतवर्ष’ के नाम से क्यों जाना जाता है

Edited By ,Updated: 04 Jan, 2017 10:55 AM

the legend of shakuntala dushyanta

पुरुवंश में अनेक राजर्षि हुए हैं। राजा दुष्यंत भी इन्हीं के वंशज थे। एक बार राजा दुष्यंत शिकार खेलने निकले तो कण्व ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। वहां उन्होंने एक बहुत ही सुंदर कन्या को देखा।

पुरुवंश में अनेक राजर्षि हुए हैं। राजा दुष्यंत भी इन्हीं के वंशज थे। एक बार राजा दुष्यंत शिकार खेलने निकले तो कण्व ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। वहां उन्होंने एक बहुत ही सुंदर कन्या को देखा। राजा दुष्यंत उस सुंदरी को देखकर उस पर अत्यंत मोहित हो गए। उस समय आश्रम में वह कन्या अकेली ही थी। युवती ने राजा से कहा, ‘‘मैं कण्व ऋषि की पुत्री हूं। वह इस समय तपस्या में समाधिस्थ हैं। आप मेरा आतिथ्य स्वीकार करें।’’


राजा ने कहा, ‘‘देवी! मैं क्षत्रिय हूं। मैं आपको देखकर मोहित हो गया हूं। आप निश्चय ही ब्राह्मण-पुत्री नहीं हो सकतीं।’’


युवती ने कहा, ‘‘सच है। मैं ऋषि विश्वामित्र एवं मेनका की पुत्री शकुंतला हूं। जन्म होते ही मेरी माता मुझे यहां छोड़कर चली गई। कण्व ऋषि ने ही मेरा पालन-पोषण किया इसलिए मैं उनकी पुत्री हूं।’’


शकुंतला की बातों से राजा और भी अधिक प्रभावित हुए। शकुंतला की स्वीकृति प्राप्त कर राजा दुष्यंत ने उससे ‘गंधर्व-विवाह’ किया। कुछ समय अपनी प्रिय पत्नी के साथ बिताने के बाद राजा अपनी नगरी को लौट गए।


शकुंतला गर्भवती थी। समय आने पर उसे पुत्र हुआ। महर्षि कण्व ने उसका विधिवत जातकर्म संस्कार आदि किया और उसको क्षत्रिय धर्म के अनुरूप शस्त्रविद्या की शिक्षा देने लगे। वह बालक बचपन से ही साहसी एवं बलवान था। सिंह शावकों को बांध कर उनके साथ खेलना उसकी एक विशेषता ही थी। राजा दुष्यंत ने लौटते समय शकुंतला को कण्व ऋषि के आने के बाद अपनी नगरी में ले जाने का वचन दिया था। शकुंतला उनके पास गई, पर राजा ने शापवश उसे स्वीकार नहीं किया।


राजा दुष्यंत को शकुंतला से विवाह आदि का विस्मरण हो गया। अत: शकुंतला कण्व के आश्रम में रहती रही और यहीं उसने अपने पुत्र को जन्म दिया। यही पुत्र आगे चलकर ‘भरत’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भरत के नाम से आज हमारा देश ‘भारतवर्ष’ कहा जाता है। बालक भरत की सिंह-शावकों को बांधकर खेलने की लीला, शिकार खेलने आए राजा दुष्यंत ने देखी। 


राजा को स्वाभाविक स्नेह उत्पन्न हुआ। उसी समय आकाशवाणी हुई, जिसने राजा को स्मरण कराया कि शकुंतला से गंधर्व विवाह करके तुमने ही बालक को उत्पन्न किया है। तब राजा दुष्यंत ने कण्व ऋषि से क्षमा-प्रार्थना की तथा अपनी पत्नी शकुंतला एवं पुत्र भरत को लेकर अपनी राजधानी लौट गए।


राजा दुष्यंत के बाद भरत चक्रवर्ती सम्राट बने। उन्होंने गंगासागर से गंगोत्री तक पचपन अश्वमेध यज्ञ और प्रयाग से लेकर यमुनोत्री तक यमुना तट पर अठहत्तर अश्वमेध यज्ञ किए। राजा भरत ने सर्वाधिक यज्ञ करके सभी राजाओं में श्रेष्ठता प्राप्त की। उन्होंने पृथ्वी पर एकछत्र राज्य किया। 


(श्रीमद्भागवत पुराण से)
(‘राजा पॉकेट बुक्स’ द्वारा प्रकाशित पुराणों की कथाएं से साभार)

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