जो पुरूष करते हैं ये काम, कभी सुख नहीं पाते और बनते हैं कुल के नाश का कारण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Nov, 2017 08:02 AM

the men who do this work they can never find happiness

श्रीरामायण में किसी भी महिला का सम्मान करने पर विशेष बल दिया गया है। जो मनुष्य नारी का सम्मान नहीं करते वो अपने साथ-साथ कुल के भी नाश का कारण बनता है। ऐसे पुरूष जीवन में कभी सुख नहीं पाते कोई न कोई दुख उन्हें सदा घेरे रहता है। हिंदू धर्म के सभी...

श्रीरामायण में किसी भी महिला का सम्मान करने पर विशेष बल दिया गया है। जो मनुष्य नारी का सम्मान नहीं करते वो अपने साथ-साथ कुल के भी नाश का कारण बनता है। ऐसे पुरूष जीवन में कभी सुख नहीं पाते कोई न कोई दुख उन्हें सदा घेरे रहता है। हिंदू धर्म के सभी शास्त्रों में पराई महिला पर बुरी नजर डालना अथवा उससे उसकी इच्छा के विरूद्ध या सहमती से संबंध स्थापित करना महापाप माना गया है। जो पुरूष ऐसा करता है मरणोपरांत उसका वास नरक में होता है। इस पाप से वंश का तो नाश होता ही है साथ ही इसके दुष्प्रभाव का दाग आने वाली पीढ़ियों पर भी लग जाता है। तुलसीदास जी ने श्रीरामायण में बहुत सी नीतियों का वर्णन किया है जो सुखी जीवनयापन करने के लिए बहुत ही सहायक हैं। इन नीतियों को अपने जीवन का अंग बनाने से बहुत से अनचाहे दुखों और परेशानियों से निजात पाया जा सकता है। 


श्रीरामायण में तुलसीदास जी लिखते हैं-
अनुज बधू भगिनी सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ए चारी। इन्हिह कुदृष्टि बिलोकइ जोई, ताहि बधें कछु पाप न होई।।

 
अर्थात- छोटे भाई की पत्नी, बहन, पुत्र की पत्नी और अपनी पुत्री- इन चारों में कोई अंतर नहीं है किसी भी पुरूष के लिए ये एक समान होनी चाहिए। इन पर अपनी कुदृष्टि रखने वाला या इनका अपमान करने वाले का वध करने से पाप का भागी नहीं बना जा सकता।


छोटे भाई की पत्नी किसी भी पुरूष के लिए बहू के समान होती है। उस पर बुरी नजर रखने वाले का सर्वनाश हो जाता है। श्रीरामायण में वर्णित प्रसंग के अनुसार किष्किन्धा के राजा बालि ने अपने छोटे भाई सुग्रीव को राज्य से बाहर करके उसकी पत्नी रूमा के साथ गलत व्यवहार किया था। जो अनुचित था। श्रीराम ने बाली को मारकर उसे उसके कृत्यों की सजा दी। 

 
अपनी बेटी और पुत्र की पत्नी में कोई अंतर नहीं समझना चाहिए। जैसी भी परिस्थितियां हों सदा अपनी बहू के मान-सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। उसे किसी भी तरह का कोई दुख-संताप नहीं देना चाहिए। श्रीरामायण में वर्णित प्रसंग के अनुसार एक समय स्वर्ग में रहने वाली अप्सरा रंभा रावण के सौतेले भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर से भेंट के लिए जा रही थी। मार्ग में उसे रावण मिला और उस पर गंदी बातों और नजरों से प्रहार करने लगा। उसके कामातुर व्यवहार को देख रंभा ने उससे कहा कि वह कुबेर के पुत्र नलकुबेर से भेंट करने जा रही है उस लिहाज से वह उसकी पुत्रवधू के समान है। रावण पर उसकी बात का तनिक भी प्रभाव न पड़ा और अपनी मर्यादा लांघ गया। रंभा ने क्रुद्ध होकर उसे श्राप दिया की वह किसी भी परस्त्री पर बुरी दृष्टि डालेगा तो उसका सिर सौ टुकड़ों में विभक्त हो जाएगा और स्त्री ही उसके नाश का कारण बनेगी।

 
अपनी बेटी को आदर देना प्रत्येक बुरी परिस्थिति से उसे बचा कर रखना प्रत्येक पिता का परम धर्म है। अपनी बेटी से गलत व्यवहार करना, उस पर कुदृष्टि रखना महापाप माना गया है। ऐसे मनुष्य जीवन में जितने भी पुण्य कर्म कर लें उनके पापों का बोझ कभी कम नहीं हो सकता।

 
सभी पुरूषों को अपनी छोटी बहन को बेटी और बड़ी बहन को मां के समान मानना चाहिए। जो पुरूष अपनी बहन के मान-सम्मान की रक्षा नहीं करता वह पुरूष दैत्य के समान है। अपनी बहन के साथ बुरा करने वाला पुरूष जीते जी नरक तुल्य कष्ट भोगता है।

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