Edited By Lata,Updated: 14 Oct, 2019 10:42 AM
शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि मनुष्य के शरीर,
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शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि मनुष्य के शरीर, कारोबार और आस-पास के वातावरण पर मन का गहरा प्रभाव पड़ता है। आज प्रतिस्पर्धा और भाग-दौड़ की दुनिया में 90 प्रतिशत से अधिक बीमारी साइकोसोमैटिक (मनोदैहिक) है। इनकी उपज ज्यादातर मानसिक तनाव, अस्थिरता और अस्वस्थता के कारण ही है। फलस्वरूप अपराध वृत्ति, असामाजिक कार्य, अवसाद एवं आत्मघात आदि में वृद्धि हुई है। इस विषम परिस्थिति से उबरने के लिए व्यक्ति और समाज में मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा, महत्व और उसे प्राप्त करने के सरल और सहज उपाय के बारे में जन-जागृति लाना जरूरी है।
सबसे पहले मन को जानने और उसे सुखी व संतुलित करने के बारे में सही समझ और जानकारी प्राप्त करनी है। मनुष्य का मन 4 आयामों से बना है-संकल्प, भावना, नजरिया और स्मृति। मन के ये 4 प्रवाह सकारात्मक, नकारात्मक, साधारण या व्यर्थ भी हो सकते हैं।
जब मन के संकल्प सकारात्मक होते हैं तब भावनाएं और स्मृतियां सकारात्मक ही निकलती हैं। इससे मन शांत, स्थिर, संतुलित और स्वस्थ रहता है। वास्तव में सकारात्मक मन ही स्वस्थ और शक्तिशाली मन है। इसके विपरीत नकारात्मक या व्यर्थ सोच अशांत, तीव्र, अस्थिर, असंतुलित और घातक होती है। यह नकारात्मक स्थिति अस्वस्थ और दुर्बल मन की ही उपज है। जरूरत है व्यक्ति की मानसिकता, वृत्ति, व्यवहार, चरित्र और आदतों को सकारात्मक, स्वस्थ, स्वच्छ और आशावादी बनाने की क्योंकि स्वस्थ चिंतन से स्वच्छ वृत्ति, स्वस्थ प्रवृत्ति, स्वच्छ वातावरण और स्वस्थ प्रकृति बनती है।