गोवर्धन पूजा के पीछे का पौराणिक कारण जानें

Edited By Jyoti,Updated: 08 Nov, 2018 09:37 AM

this is the mythological reason behind govardhan pooja

आज 8 नवंबर 2018 को गोवर्धन पूजा का दिन मनाया जाएगा। दिवाली के ठीक अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। कुछ मान्यताओं के अनुसार इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इसे काफी महत्व दिया जाता है।

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आज 8 नवंबर 2018 को गोवर्धन पूजा का दिन मनाया जाएगा। दिवाली के ठीक अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। कुछ मान्यताओं के अनुसार इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इसे काफी महत्व दिया जाता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोक कथा प्रचलित है। तो आइए जानते हैं इससे संबंधित कथा- 
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पौराणिक कथा के अनुसार देवराज इंद्र को अभिमान हो गया था। इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची। एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से यशोदा मां से प्रश्न किया कि मइया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं। कृष्ण की बातें सुनकर मइया ने बताया कि सब देवराज इंद्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं। जिसके बाद श्री कृष्ण बोले मैया हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं। यशोदा मइया ने इसका उत्तर देते हुए बताया कि वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है, उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है।
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भगवान श्री कृष्ण बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इंद्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए। लीलाधारी की इस लीला के बाद सभी ने देवराज इंद्र को छोड़कर गोवर्घन पर्वत की पूजा की। जिसे इंद्र ने अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनके कारण ही हुआ है। 
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बृजवासियों की इस हालात में देखकर मुरलीधर कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इंद्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हो गए और उन्होंने वर्षा को और तेज़ कर दिया। इंद्र के मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। 
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इंद्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हें एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं है। अतः वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब बात बताई। तब ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अवतार हैं। ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इंद्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके बाद देवराज इंद्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया। इसी घटना के बाद से गोवर्घन पूजा की जाने लगी। 
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