Tileswari Barua Death anniversary: देश की सबसे कम उम्र की शहीद तिलेश्वरी बरुआ जिनको 8 दशक बाद मिली इतिहास में जगह

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Sep, 2023 08:25 AM

tileswari barua death anniversary

नारी शक्ति की भागीदारी के बिना देश के स्वतंत्रता संग्राम का स्वरूप ही अलग होता क्योंकि सैंकड़ों महिलाओं ने अलग-अलग तरीकों से आजादी के संघर्ष में सहयोग किया।

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Tileswari Barua Death anniversary: नारी शक्ति की भागीदारी के बिना देश के स्वतंत्रता संग्राम का स्वरूप ही अलग होता क्योंकि सैंकड़ों महिलाओं ने अलग-अलग तरीकों से आजादी के संघर्ष में सहयोग किया। असम में सोनितपुर जिले के अंतर्गत आने वाले ढेकियाजुली की देश की सबसे कम उम्र की शहीद 12 वर्षीय तिलेश्वरी बरुआ भी ऐसी ही किशोरी थी। जिसे करीब 8 दशक के बाद इतिहास में स्थान मिल सका, जब असम सरकार ने ढेकियाजुली पुलिस स्टेशन, जहां भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भीषण नरसंहार हुआ था, को विरासत घोषित किया। 

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ढेकियाजुली के ग्राम निज बड़गांव के एक सीमांत किसान भाभाकांत बरुआ की इकलौती बेटी, तिलेश्वरी बरुआ बचपन से ही देशभक्ति गीतों से प्रभावित थी। यही कारण है कि काफी कम आयु में ही वह स्वेच्छा से स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी। स्थानीय नेताओं के साथ लोगों ने 20 सितंबर, 1942 को स्थानीय थाने के ऊपर तिरंगा फहराने का आयोजन किया था। हाथ में छोटा झंडा लिए तिलेश्वरी उस भीड़ में शामिल थी, जो पुलिस कमांडर कमलाकांत दास के सीटी बजाकर इशारा करने के तुरंत बाद थाना परिसर में दाखिल हुई थी। पुलिस फायरिंग के बीच उसने मनबर नाथ, गोलोक नियोग और चंद्रकांता नाथ को झंडा फहराने की कोशिश करते देखा। 

जैसे ही वह ‘वंदे मातरम्’ के नारे लगाने लगी उसने महिराम कोच को बहुत करीब से गोली लगते हुए देखा। हैरानी की बात तो यह कि इस नजारे ने उस छोटी बच्ची को डराने की बजाय अचानक एक क्रूर बाघिन में बदल दिया और वह ‘वंदे मातरम्’ के नारे जारी रखते हुए आगे बढ़ने लगी। जैसे ही बच्ची के कुछ कदम आगे बढ़े, उसी समय उसे एक गोली लगी और उसका संतुलन बिगड़ गया। 

स्वयं सेवकों और उसके मामा नंदीराम भुइयां ने उसे बचाने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उन्हें इसका मौका नहीं दिया। भुइयां ने एक पुलिस ट्रक को तिलेश्वरी को सड़क से उठाते हुए देखा। तिलेश्वरी की मौत सड़क पर ही हो चुकी थी या कहीं और यह पता नहीं चल सका क्योंकि पुलिस ने उसे जिंदा या मृत कभी नहीं लौटाया।

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निहत्थे लोगों पर पुलिस की अंधाधुंध गोलियों की बरसात से तिलेश्वरी सहित कम से कम 15 लोग शहीद हुए। स्थानीय इतिहासकारों ने चार महिलाओं सहित 14 शहीदों के नामों की ही पुष्टि की, मगर वहां पर कम से कम छह और लोगों ने भी शहीदी दी थी जो बाद में पुलिस फायरिंग, लाठीचार्ज और किराए के बदमाशों के हमले के कारण गंभीर रूप से घायल होने के बाद मारे गए थे।

इस नरसंहार में एक भिखारी और साधु भी शहीद हुए। भारत में कोई दूसरा उदाहरण नहीं है जहां स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक साधु और एक भिखारी ने शहादत दी हो।

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