परम की कामना करना ही है प्रार्थना

Edited By Jyoti,Updated: 04 Apr, 2018 10:43 AM

true meaning of prayer

प्रार्थना एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें हम जो भी आभाव महसूस करते हैं हम परमात्मा से मांगते है। वैसे तो प्रार्थना के कई अर्थ हैं, लेकिन व्याकरण के अनुसार निवेदन पूर्वक मांगना यानी प्रार्थना।

प्रार्थना एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें हम जो भी आभाव महसूस करते हैं हम परमात्मा से मांगते है। प्रार्थना के बारे में लोगों का अपना अलग-अलग नजरिया है लेकिन यदि अध्यात्म की नजर से देखा जाए तो इसका एक मतलब परम की कामना करना या पवित्र मन से अर्चन करना प्रार्थना कहलाता है। जब संसार के समक्ष झुक कर हम कुछ मांगते हैं तो वो प्रार्थना नहीं, सहज निवेदन होता है। लेकिन, जब यही निवेदन संसार से परे, परमात्मा को मनाने के लिए किया जाए तो वो प्रार्थना बन जाती है। 


ग्रंथों में प्रार्थना को पवित्रता के साथ की गई अर्चना होती है। इसका एक अर्थ परम की कामना भी है। कई लोग मन्नत व प्रार्थना को एक बता देते हैं। लेकिन इन दोनों में बहुत अंतर है। मन्नत भगवान से कुछ पाने के लिए की जाती है, प्रार्थना प्रभु को ही पाने के लिए होती है। सिर्फ मंत्रों से, हाथ जोड़कर बैठ जाने से, मंदिर और प्रतिमाओं की परिक्रमा से या किलोभर प्रसाद बांट देने से प्रार्थना नहीं होती, प्रार्थना तब होती है, जब हम अंतर मन में प्रभु को याद करते हैं। भगवान को सिर्फ अपने भक्तों की भक्ति प्यारी है, भक्त उसके लिए महत्वपूर्ण है, प्रसाद और चढ़ावा नहीं।


जब सारी वासनाओं से उठकर जब हम सिर्फ उस परमानंद को पाने की मन से चेष्टा करते हैं, प्रार्थना हमारे भीतर गूंजने लगती है। प्रार्थना, मंत्रों का उच्चारण मात्र नहीं है, मन की आवाज है, जो परमात्मा तक पहुंचनी है। अगर मन से नहीं है, तो वो मात्र शब्द और छंद भर हैं। प्रार्थना हृदय से निकलती है। 


प्रार्थना का कोई विकल्प नहीं है। अगर उसको पाना है तो यही मार्ग है। प्रार्थना हम परमात्मा को ही मांगने के लिए करते हैं, उसकी कृपा के लिए करते हैं। उससे कुछ पाने के लिए तो मांगने के कई साधन हैं। लेकिन उसको ही पाना हो तो फिर अंतर मन से निकली आवाज ही उसका रास्ता है। क्योंकि, ग्रंथों ने कहा है कि परमात्मा सिर्फ मन से निकली आवाज सुनता है, क्योंकि वो आत्मा की आवाज है, और आत्मा उसका ही अंश है। जब तक भीतर से नहीं पुकारेंगे, वो नहीं सुनेगा।


प्रार्थना के कुछ नियम है। कुछ ऐसी बातें जो हमें प्रार्थना में ध्यान रखनी चाहिए-
पहला नियम

वासना से परे हो जाएं। संतों ने कहा है वासना जिसका एक नाम “ऐषणा” भी है, तीन तरह की होती है, पुत्रेष्णा, वित्तेषणा और लोकेषणा। संतान की कामना, धन की कामना और ख्याति की कामना।

जब मनुष्य इन सब से ऊपर उठकर सिर्फ परमतत्व को पाने के लिए परमात्मा के सामने खड़ा होता है, प्रार्थना तभी घटती है। उस परम को पाने की चाह, हमारे भीतर गूंजते हर शब्द को मंत्र बना देती है, वहां मंत्र गौण हो जाते हैं, हर अक्षर मंत्र हो जाता है।

 

दूसरा नियम
प्रार्थना अकेले में नहीं, एकांत में करें। जी हां, अकेलापन नहीं, एकांत हो। दोनों में बड़ा आध्यात्मिक अंतर है। अकेलापन अवसाद को जन्म देता है, क्योंकि इंसान संसार से तो विमुख हुआ है, लेकिन परमात्मा के सम्मुख नहीं गया। एकांत का अर्थ है आप बाहरी आवरण में अकेले हैं, लेकिन भीतर परमात्मा साथ है। संसार से वैराग और परमात्मा से अनुराग, एकांत को जन्म देता है, जब एक का अंत हो जाए. आप अकेले हैं लेकिन भीतर परमात्मा का प्रेम आ गया है तो समझिए आपके जीवन में एकांत आ गया। इसलिए अकेलेपन को पहले एकांत में बदलें, फिर प्रार्थना स्वतः जन्म लेगी।


तीसरा नियम
इसमें परमात्मा से सिर्फ उसी की मांग हो। प्रार्थना सांसारिक सुखों के लिए मंदिरों में अर्जियां लगाने को नहीं कहते, जब परमात्मा से उसी को मांग लिया जाए, अपने जीवन में उसके पदार्पण की मांग हो, वो प्रार्थना है। इसलिए अगर आप प्रार्थना में सुख मांगते हैं, तो सुख आएगा, लेकिन ईश्वर खुद को आपके जीवन में नहीं उतारेगा। जब आप परमात्मा से उसी को अपने जीवन में उतारने की मांग करेंगे तो उसके साथ सारे सुख स्वयं ही आ जाएंगे।


चौथा नियम
प्रार्थना में लिए ही नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी सुख-शांति की कामना कीजिए। इस तरह की प्रार्थना निःस्वार्थ प्रार्थना कहलाती हैं। कोशिश करें कि कभी-कभी भगवान से किसी ऐसे इंसान के लिए भी कुछ मांगें जो आपसे जुड़ा नहीं है, सीधे लाभ या हानि का कोई संबंध नहीं है। दूसरों के लिए अच्छा मांगें। आपको इससे जो शांति और तृप्ति मिलेगी वो अतुलनीय होगी।

 

पांचवा नियम
संचार के सारे संसाधनों से दूर दिन में, सप्ताह में या महीने में कुछ समय ऐसा निकालें, जब आप के साथ सिर्फ आप खुद हों। अपने जीवन और उसके पहलुओं पर चिंतन करें, कहां चूक रहे हैं, कितना खप चुके हैं, परमात्मा और आत्मिक शांति के लिए क्या किया है आज तक। ये समय आपने जो अपने साथ बिताया है, ये आपके जीवन को नई दिशा में ले जाएगा।


छठा नियम
अगर परेशानियों में आपको ये लग रहा है कि आप अकेले नहीं है, कोई है जो आपको रास्ता दिखा रहा है पीछे से, तो परमात्मा आपके साथ हैं। अगर परेशानी में खुद को अकेला और हारा हुआ महसूस करते हैं, बहुत जल्दी घबरा जाते हैं तो समझ लीजिए कि आप अभी भगवान तक अपनी बात पहुंचा ही नहीं पाए हैं। प्रार्थना बिना मांगे सब पाने का नाम है। अगर आप में विपरीत परिस्थितियों में सहज रहने और मुस्कुरा कर सबका सामना करने की शक्ति आ रही है तो आप उससे जुड़ चुके हैं।

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