...तो इसलिए माना जाता है उज्जैन की धरती को स्वर्ग

Edited By Lata,Updated: 15 Dec, 2019 12:27 PM

ujjain s heaven to earth

हिंदू धर्म में भगवान शिव को सोमवार के दिन पूजा जाता है। अगर आप हर दिन शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ा सकते तो केवल

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हिंदू धर्म में भगवान शिव को सोमवार के दिन पूजा जाता है। अगर आप हर दिन शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ा सकते तो केवल सोमवार के दिन ही उनका पूजन कर लें तो वे बहुत जल्दी प्रसन्न होकर अपने भक्त पर कृपा करते हैं। जैसे कि आप सबने उनके कई शिवलिंग के दर्शन किए हैं, ठीक वैसे ही उनके 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में जानते होंगे। आज हम बात करेंगे, उज्जैन स्थित दूसरे ज्योतिर्लिंग, जिसे महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है।
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यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है। महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और आयु पर आए हुए संकट को टालने के लिए की जाती है। उज्जैन वासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन की रक्षा कर रहे हैं। इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग तो स्थापित है ही, लेकिन साथ ही यहां हिंदू धर्म के खास पर्व जिसे कुंभ कहा जाता है, उसका भी आयोजन होता है। यही वजह है कि उज्‍जैन को अत्‍यंत पवित्र भूमि माना जाता है। ग्रंथों में तो इस स्‍थान को स्‍वर्ग की उपाधि से नवाजा गया है। बता दें कि उज्‍जैन ही एक मात्र ऐसी पवित्र भूमि हैं जहां पर साढ़े तीन काल एक साथ विराजमान हैं। इनमें महाकाल, कालभैरव, गढ़कालिका और अर्धकाल भैरव हैं। जिनकी स्‍थापना उज्‍जैन में हैं। इनकी पूजा का विशेष विधान है। 
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उज्‍जैन को ग्रंथों में स्‍वर्ग बताने की एक प्रमुख वजह यहां पर श्री गणेश के तीनों रूपों का भी होना है। उज्‍जैन में गणपति जी के चिंतामन, मंधामन और इच्‍छामन तीनों ही रूप विद्यमान है। यह अपने आप ही अत्‍यंत विशेष है। कहा जाता है कि पूरे भारत में ऐसी दूसरी जगह नहीं है जहां पर शिव जी के पुत्र गणेश जी के तीनों रूप स्‍थापित हों। वहीं दूसरी ओर उज्‍जैन में विष्णु सागर के पास प्राचीन श्री राम जनार्दन मंदिर है। दोनों ही मंदिरों में श्रीराम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां चलित स्वरूप में हैं। मूर्तियों में श्रीराम और लक्ष्‍मण वनवासी रूप में नजर आते हैं। इन मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि जब श्रीराम लला अवंतिकापुरी पहुंचे तो यह मूर्तियां स्‍वत: ही स्‍थापित हो गईं।

मंगल ग्रह की उत्पत्ति भी उज्जैन की पावन धरती पर ही मानी जाती है। इसलिए भी इसकी महत्वता ओर अधिक बढ़ जाती है। इस बात के पीछे एक पौराणिक कथा भी है कि अंधकासुर के डर से इंद्र भोलेनाथ की शरण में पहुंच गए और वरदान मांगा, इसके बाद भगवान ने अंधकासुर के साथ युद्ध भी किया और उसी दौरान शिव के माथे से एक बूंद पृथ्‍वी पर गिरी जिससे लाल अंग वाले भूमि पुत्र मंगल का जन्‍म हुआ। 
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बता दें कि ये वहीं धरती है जहां भगवान कृष्ण ने 18 दिनों में 18 पुराण, 4 दिनों में 4 वेद, 6 दिनों में 6 शास्‍त्र, 16 दिनों में 16 कलाएं और केवल 20 दिनों में गीता का ज्ञान प्राप्‍त किया था। इसके साथ ही श्री हर‍ि के रक्‍त से उत्‍पन्‍न हुई शिप्रा नदी भी यहां स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने ब्रह्म कपाल लेकर श्री हर‍ि से भिक्षा मांगने पहुंचे तो विष्‍णु जी ने उन्‍हें उंगली दिखाते हुए भिक्षा दी। इससे शिव जी अत्‍यमंत नाराज हुए और उन्‍होंने विष्‍णु जी की उस उंगली पर प्रहार कर दिया। उससे रक्‍त की धारा बहने लगी। यही धारा धरती पर आई और शिप्रा नदी में परिवर्तित हो गई। इसके अलावा यह भी जिक्र मिलता है कि इसी नदी के किनारे श्रीराम ने अपने पिता महाराज दशरथ का श्राद्धकर्म किया था।

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