Edited By Jyoti,Updated: 16 Dec, 2019 05:47 PM
अगर आप शिव भक्त हैं तो यकीनन आप जानते होंगे कि अगर इनका प्यार निराला है तो इनका क्रोध भी उतना ही निराला है।
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अगर आप शिव भक्त हैं तो यकीनन आप जानते होंगे कि अगर इनका प्यार निराला है तो इनका क्रोध भी उतना ही निराला है। कहने का भाव है ये जब ये किसी पर प्रसन्न होते हैं उसे अपने प्यार से निहाल कर देते हैं तो वहीं अगर किसी पर क्रोधित हो जाते हैं अपने क्रोध की अग्नि से इंसान को भस्म कर देते हैं। इनकी इसी कोधाग्नि से निकला है इनका भैरव स्वरूप। धार्मिक कथाओं के अनुसार शिव जो इस अवतार का प्राकट्य मार्गाशीर्ष के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तो हुआ था। ज्योतिष विद्वानों का मानना है कि इनका पूजा से घर के साथ-साथ जीवन से ही नकारात्मक उर्जा हमेशा हमेशा के लिए निकल जाती है। इसके अलावा इंसान किसी प्रकार के जादू-टोने, भूत–प्रेत आदि की नाकारात्मक ऊर्जा से प्रभावित नहीं हो पाता। परंतु इसके विपरीत अगर कोई इनके गुस्से का शिकार हो जाए तो उसका बुरा हाल हो जाता है। स्कंदपुराण के काशी - खंड के 31वें अध्याय में है इनके प्राकट्य का वर्णन पढ़ने को मिलता है। आज हम आपको इनके गुस्से से ही जुड़ी गाथा बताने वाले हैं। साथ ही जानेंगे इन्हें प्रसन्न करने के मंत्र आदि।
काल भैरव से जुड़ी पौराणिक कथा-
एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है तो स्वाभाविक ही उन्होंने अपने को श्रेष्ठ बताया। देवताओं ने वेदशास्त्रों से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, अनादि अंनत और अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं।
शिव के बारे में यह सब सुनकर ब्रह्मा जी ने अपने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कह दिया, जिसके कारण वेद दुखी हो गए। इसी समय एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र, तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम ‘रूद्र’ रखा है अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ, ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो।
उन दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाख़ून से शिव के प्रति अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सर को ही काट दिया। शिव के कहने पर भैरव काशी प्रस्थान किए जहां उन्होंने ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली।
काल भैरव मंत्र और साधना विधि-
॥ ऊं भ्रं कालभैरवाय फ़ट ॥
साधना विधि- काले रंग का वस्त्र पहनकर तथा काले रंग का ही आसन बिछाकर, दक्षिण दिशा की और मुंह करके बैठे तथा उपरोक्त मन्त्र की 108 माला रात्रि को करें।