Kundli Tv- हर शादी के कार्ड पर ये क्यों छापा जाता है ?

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Dec, 2018 02:27 PM

why is this printed on every wedding card

हिंदू परंपरा में किसी भी शुभ काम को शुरू करने से पहले गणपति को मनाने का विधान है। जिस स्थान पर पहले गणपति आ जाते हैं, उस काम के पूरा होने में कोई संदेह बाकी नहीं रह जाता।

ये नहीं देखा तो क्या देखा(video)
हिंदू परंपरा में किसी भी शुभ काम को शुरू करने से पहले गणपति को मनाने का विधान है। जिस स्थान पर पहले गणपति आ जाते हैं, उस काम के पूरा होने में कोई संदेह बाकी नहीं रह जाता। विघ्नहर्ता सभी विध्नों को हर कर सुख-संपत्ति से सभी कामों को सिद्ध करते हैं। अकसर अपने देखा होगा शादी के कार्ड पर गणेश जी का चित्र और कुछ खास पंक्तियां लिखी होती हैं। मान्यता है की ऐसा करने से लड़का-लड़की की शादी बिना किसी रुकावट के संपन्न हो जाती है।
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गणेश जी की कृपा के बगैर कोई काम नहीं हो सकता। गणेश का शाब्दिक अर्थ है गणों के स्वामी। जिनके विभिन्न नाम एवं स्वरूप हैं, लेकिन वास्तु शास्त्र में गणेश जी को अपने आप में संपूर्ण वास्तु कहा गया है। शास्त्रों के मतानुसार श्री गणेश जी की स्थापना एवं पूजा-पाठ विधि-विधान से किया जाए तो नव ग्रहों का दोष समाप्त हो जाता है। मान्यता है कि सभी ग्रह-नक्षत्रों और राशियों को गणेश जी का ही अंश माना जाता है। सच्चे मन, कर्म और वचन से जो श्री गणेश जी की आराधना एवं अनुष्‍ठान करता है, उस पर गणेश जी की विशेष अनुकंपा होती है। श्री गणेश के मूर्ति पूजन करने से सभी प्रकार के रोग और शोक दूर हो जाते हैं।
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श्री गणेश को यक्ष, दानव, किन्नर और मनुष्य जो भी पूजते हैं। वह सुख-संपदा, राज्य भोग पाते हैं। गणेश जी के भक्त सिद्धियों के ज्ञाता एवं पराक्रमी होते हैं। श्री गणेश जी के स्त्रोत का जो जातक नित्य जाप करता है वह वांछित फल पाता है। गौरी पुत्र गणेश लाइफ की हर परेशानी को दूर कर देते हैं। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करने से सभी संकट मिट जाते हैं-

प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥

प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥
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लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥

नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥
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द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥
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अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥

॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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