Kundli Tv- मगरमच्छ बनकर क्यों भगवान शंकर ने ली अपनी अर्धांगिनी की परीक्षा

Edited By Jyoti,Updated: 07 Oct, 2018 02:33 PM

why lord shankar took the test of his wife

माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की थी, ये तो सब जानते हैं। परंतु आज जिस कथा के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, इसके बारे में शायद किसी को पता ही नहीं होगा।

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माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की थी, ये तो सब जानते हैं। परंतु आज जिस कथा के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, इसके बारे में शायद किसी को पता ही नहीं होगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब देवी पार्वती शिव जी को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तप कर रही थी तब उनके तप से प्रभावित होकर देवताओं ने शिव जी से देवी की कामना को पूरी करने की प्रार्थना की। 
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जिसके बाद से शिव जी ने सप्तर्षियों को पार्वती की परीक्षा लेने के लिए भेजा। सप्तर्षियों ने शिव जी के सैकड़ों अवगुण गिनाए पर पार्वती जी को महादेव के अलावा किसी और से विवाह मंजूर न था। जैसे कि सब जानते हैं कि शादी से पहले सभी वर अपनी भावी पत्नी को लेकर आश्वस्त यानि संदेह रहित होना चाहते हैं। इसलिए शिव जी ने स्वयं भी पार्वती की परीक्षा लेने की ठानी।

आइए जानते हैं कि इस कथा के बारे मेें-
कहते हैं कि भगवान शंकर प्रकट हुए और पार्वती को वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए। इतने में जहां वह तप कर रही थीं, पास में तालाब में एक मगरमच्छ ने एक लड़के को पकड़ लिया। लड़का जान बचाने के लिए चिल्लाने लगा। पार्वती जी से उस बच्चे की चीख सुनी तो वो उसे बचाने के लिए तालाब पर पहुंचीं। वहां जाकर उन्होंने देखा कि मगरमच्छ लड़के को तालाब के अंदर खींचकर ले जा रहा है। लड़के ने देवी को देखकर कहा- मेरी न तो मां है न बाप, न कोई मित्र, माता अब आप मेरी रक्षा करें। 

पार्वती जी ने मगरमच्छ से कहा- हे ग्राह! इस लड़के को छोड़ दो। 
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मगरमच्छ बोला- दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझ कर स्वीकार करना, मेरा नियम है। ब्रह्मदेव ने दिन के छठे पहर इस लड़के को भेजा है। भला मैं इसे क्यों छोडूं?

पार्वती जी ने उससे विनती की- तुम इसे छोड़ दो। बदले में तुम्हें जो चाहिए वह मुझसे कहो। जिसके बाद मगरमच्छ ने कहा एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूं। आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा।
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पार्वती जी तैयार हो गईं। उन्होंने कहा, मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूं लेकिन तुम बस इस बालक को छोड़ दो। मगरमच्छ ने देवी को समझाते हुए कहा कि सोच लो देवी, जोश में आकर संकल्प मत करो। तुमने हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं। उसका सारा फल इस बालक के प्राणों के बदले मत गंवाओ।

पार्वती जी ने कहा, मेरा निश्चय पक्का है। मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं। तुम इसका जीवन बख्श दो।

मगरमच्छ ने पार्वती जी से तपदान करने का संकल्प करवाया। तप का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा।

इसके बाद उसने देवी पार्वती से कहा देखो तप के प्रभाव से मैं कितना तेजस्वी बन गया हूं। तुमने जीवन भर की पूंजी एक बच्चे के लिए व्यर्थ कर दी। अगर तुम चाहो तो अपनी भूल सुधारने का एक मौका मैं तुम्हें अभी भी दे सकता हूं।
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इसके उत्तर में पार्वती जी ने कहा तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लड़के को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता?

इसी सब के दौरान देखते ही देखते वह लड़का अदृश्य हो गया और मगरमच्छ भी लुप्त हो गया। अब पार्वती जी ने विचार करने लगी कि मैंने तप तो दान कर दिया है। अब पुन: तप आरंभ करती हूं। पार्वती ने फिर से तप करने का संकल्प लिया।

भगवान सदाशिव फिर से प्रकट होकर बोले- पार्वती, भला अब क्यों तप कर रही हो?

पार्वती जी ने कहा- प्रभु! मैंने अपने तप का फल दान कर दिया है। आपको पतिरूप में पाने के संकल्प के लिए मैं फिर से वैसा ही घोर तप कर आपको प्रसन्न करुंगी।
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महादेव ने कहा हे पार्वती मगरमच्छ और लड़के दोनों रूपों में मैं ही था। तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख-दुख का अनुभव करता है या नहीं, इसकी परीक्षा लेने को मैंने यह लीला रची। अनेक रूपों में दिखने वाला मैं एक ही हूं। मैं अनेक शरीरों में, शरीरों से अलग निर्विकार हूं। तुमने अपना तप मुझे ही दिया है इसलिए अब तुम्हें और तप करने की जरूरत नहीं।
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