हरियाणा में दूध उत्पादन बढ़ाने को साहिवाल और हरियाना गायों की संख्या में की जा रही बढ़ोतरी

Edited By Updated: 16 Oct, 2021 09:16 PM

increasing the number of cows

हरियाणा गौ सेवा आयोग और लुधियाना गडवासु मिलकर एंब्रियो ट्रांसफर तकनीक प्रोजैक्ट पर कर रहे काम साहिवाल भ्रूण को गैर देसी गायों की कोख में किया जा रहा स्थापित

चंडीगढ़, (अर्चना सेठी): हरियाणा में देसी गाय साहिवाल और हरियाना की संख्या बढ़ेगी। देसी गायों के नस्ल संवर्धन के बाद बढिय़ा मात्रा में दूध उत्पादन करने वाली गाय प्रदेश में श्वेत क्रांति लाने का काम करेंगी। हरियाणा गौ सेवा आयोग ने देसी नस्ल की गायों की आबादी बढ़ाने के लिए लुधियाना की गुरु अंगद देव वैटर्नरी एंड एनिमल साइंस यूनिवॢसटी (गडवासु) के साथ अनुसंधान कार्य पर आधारित प्रोजैक्ट शुरू किया है। प्रोजैक्ट के अंतर्गत कम दूध देने वाली गायों की कोख से ज्यादा दूध उत्पन्न करने वाली बछडिय़ों को पैदा किया जाएगा। शुरूआत में आयोग और गडवासु ने 7 ऐसी गायों का चयन किया है जो या तो बहुत कम दूध देती थी या जिन्हें सड़क  पर आवारा घूमते हुए पकड़कर गौशाला में रखा था। ऐसी गायों के गर्भ में साहिवाल नस्ल की गाय और सांड के भ्रूण को रख दिया गया है। 

 


गायों की नस्ल में आएगा सुधार
हरियाणा गौ सेवा आयोग के सचिव डॉ. चिरंतन कादियान का कहना है कि दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ देशभर में ऐसी प्रयोगशालाओं की स्थापना की जा रही है जो गायों के नस्ल संवर्धन के लिए एंब्रियो ट्रांसफर टैक्नोलॉजी पर काम करेंगी। कई राज्यों में ऐसी प्रयोगशालाओं की स्थापना की जा चुकी है। जैसे उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा इत्यादि में इन प्रयोगशालाओं को स्थापित कर दिया गया है और बाकी राज्य इस योजना पर काम कर रहे हैं क्योंकि राष्ट्रीय गोकुल मिशन ने देशभर में ऐसी 31 प्रयोगशालाएं स्थापित करने के लिए वित्तीय सहयोग दिया है।

प्रयोगशाला का मकसद देसी गायों की नस्ल में सुधार लाना है ताकि एक गाय एक समय में 20 से 30 लीटर दूध दे सके। लुधियाना की गडवासु यूनिवॢसटी के साथ मिलकर आयोग कमजोर व कम दूध देने वाली गायों की नस्ल में सुधार कर रहा है। गडवासू की प्रयोगशाला में साहिवाल गाय और साहिवाल सांड के एग और सीमन से भ्रूण तैयार किए जा रहे हैं। उन भ्रूण को दो तरीके से गाय की कोख में रखा जा रहा है।

पहली तकनीक में गाय के गर्भ में ही भ्रूण तैयार कर 7 दिन पूरे होने से पहले दूसरी गाय की कोख में डाल दिया जाता है और दूसरी तकनीक में लैब में भ्रूण तैयार किया जाता है और जिस गाय में भ्रूण रखना होता है उसकी प्रोग्रामिंग की जाती है। पहले उसे हारमोन देकर हीट पीरियड में लाया जाता है और उसके बाद तैयार भ्रूण को गाय के गर्भ में रख दिया जाता है। गाय में गर्भ ठहरने के नौ महीनों के बाद सिर्फ बछड़ी का ही जन्म होता और वह बछड़ी भी मां की तरह तकरीबन 30 लीटर दूध का उत्पादन करती है। 


30 गायों की कोख में रखे जाने हैं भ्रूण
पिंजौर के कामधेनु गौशाला सेवा सदन के वरिष्ठ उप प्रधान नवराज राय धीर का कहना है कि प्रोजैक्ट के अंतर्गत 30 गायों की कोख में साहिवाल नस्ल के भ्रूण को स्थापित करना है। लुधियाना गडवासु के विशेषज्ञ अपनी प्रयोगशाला में भ्रूण को तैयार करने के बाद हरियाणा तक भ्रूण को खास किस्म की मशीन इनक्यूबेटर में रखकर लाते हैं। इनक्यूबेटर में भ्रूण के लिए जरूरी तापमान और गैसों की सप्लाई की जाती है। हरियाणा की गौशाला में इनक्यूबेटर से भ्रूण को निकालकर माइक्रोस्कोप और अन्य तकनीकी सहयोग के साथ कम दूध उत्पन्न करने वाली गाय की कोख में ट्रांसफर कर दिया जाता है। इन गायों को पहले ही हारमोन देकर भ्रूण रखने के लिए तैयार किया जा चुका होता है। गौशाला में आवारा सड़क पर घूमने वाली गायों को भी रखा गया है, ये गैर देसी गाय हैं और भ्रूण ट्रांसफर के बाद इनके गर्भ से साहिवाल गायों की उत्पत्ति होगी। एक भ्रूण तैयार करने पर करीब 30 हजार रुपए का खर्च आता है। 


हरियाणा और पंजाब में प्रयोगशालाएं कर रही हैं काम 
नवराज राय धीर ने कहा कि लुधियाना यूनिवॢसटी में नब्बे के दशक में प्रयोगशाला स्थापित की गई थी। उस प्रयोगशाला में अब तक सैंकड़ों भ्रूण तैयार किए जा चुके हैं। वहां की प्रयोगशाला के भ्रूण से गायों में गर्भधारण की 70 फीसदी संभावना होती है। हिसार की लाला लाजपत राय यूनिवॢसटी में भी ऐसी ईटीटीफ आई.वी.एफ. लैब की कुछ महीने पहले स्थापना की जा चुकी है। यह लैब अंतर्राष्ट्रीय कंपनी ए.बी.एस. के साथ मिलकर काम कर रही है।    


 

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