चमड़ी में जलन पैदा करता है ये रोग

Edited By Updated: 19 Feb, 2015 10:46 AM

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मनुष्य की त्वचा उसके शरीर का सबसे विस्तृत व महत्वपूर्ण अंग है।इसका संबंध हमारे यकृत और मस्तिष्क से भी है।यह एक जटिल अंग है....

मनुष्य की त्वचा उसके शरीर का सबसे विस्तृत व महत्वपूर्ण अंग है।इसका संबंध हमारे यकृत और मस्तिष्क  से भी है।यह एक  जटिल अंग है जिसके भीतर नाडिय़ां, रक्तवाहिनी नलिकाएं, ग्रंथियां, कोशिकाएं एवं चर्बी आदि सब छिपी रहती हैं।ये शरीर को ढंकने वाली वाटरप्रूफ या गैसप्रूफ परतें हैं जो भीतरी अंगों की रक्षा करती हैं तथा हरदम बाहरी वातावरण के प्रभाव को रोकती हैं। त्वचा सूर्य की प्रखर किरणों से शरीर की रक्षा करती है।

सूर्य की गर्मी से शरीर के भीतर विटामिन डी का निर्माण त्वचा द्वारा होता है।चर्म रोगों से शरीर में काफी जलन पैदा होती है। चमड़े की जलन को डार्माडिरिस कहा  जाता है। चर्म रोगों की उत्पत्ति का कारण मुख्य रूप से शरीर के भीतर विषैले पदार्थों का जमा होना है। कुछ चर्म रोगों की उत्पत्ति विषैले पदार्थ, पारा, आयोडीन, पोटाशियम, टीका वगैरह दवाइयों के कारण होती है। इन्हीं के कारण चमड़ी में जलन पाई जाती है।

चर्म रोग विशेषज्ञ रोगियों से चर्म रोगों में साबुन से स्नान करवाते हैं, जिसके कारण रोगियों की तकलीफ और बढ़ जाती है। चर्म रोगों में सफाई रखना आवश्यक है। साधारण गर्म पानी से स्नान करना बड़ा उपयोगी होता है। ठीक से स्नान करने से ही बहुत से चर्म रोग नष्ट हो जाते हैं।चर्म रोगों के रोगी अक्सर अधिक खाने के आदी होते हैं।भोजन में स्टार्च व शूगर चर्म रोग को बढ़ाते हैं। साथ ही हर प्रकार की बदहजमी से बचना चाहिए।

भोजन में एक साथ स्टार्च व प्रोटीन नहीं लेना चाहिए।सोरायसिस की पहचान छोटे-छोटे दागों से होती है।शरीर की सतह से वे कुछ ऊंचे उठे हुए होते हैं और त्वचा की परतों से ढंके रहते हैं।खास कर गर्मी के दिनों में यह बीमारी अधिक होती है। इससे चमड़ी मोटी व  लाल हो जाती है तथा वहां जलन व दर्द भी होने लगता है।गर्मी में यह ठीक हो जाता है तथा जाड़े में यह रोग फिर फैल जाता है।एक बार अच्छा हो जाने के बाद भी इस रोग के दोबारा हो जाने का भय बना रहता है।इस रोग से पूर्णतया मुक्त होने में काफी लम्बा समय लग जाता है।

भोजन में जरा-सी भी बदपरहेजी करने से रोग दोबारा आक्रमण कर सकता है, इसलिए चर्म रोग से ग्रसित  रोगी को उचित खाद्य पदार्थों का चुनाव करना चाहिए। चाय, काफी वगैरह से  भी परहेज करना उचित होगा। रोग के दोबारा प्रकट होने पर समय-समय पर छोटे उपवास करना आवश्यक है। रोग के दौरान उपवास करने से आराम मिलता है।

— लक्ष्मी प्रसाद पंत 

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