Edited By Monika Jamwal,Updated: 30 Mar, 2022 04:12 PM

जम्मू की धरती जितनी खूबसूरत है उतना ही गहरा है इसका इतिहास।
जम्मू: जम्मू की धरती जितनी खूबसूरत है उतना ही गहरा है इसका इतिहास। बात अगर अखनूर की करें तो इसका इतिहास से और संस्कृति से और भी गहरा नाता है। चिनाब दरिया के किनारे पर बसा अखनूर शहर शिवालिक पहाडि़यों की सुंदरता को भी दर्शाता है और प्राचीन भारत की कथा का साक्षी भी है।

चिनाब नदी का अर्थ देखा जाए तो चन्न का अर्थ है चंद्रमा और आब यानि कि नदी। अर्थात चंद्रमा की नदी।
वहीं अखनूर अर्थात आंख का नूर। इसे मुगलिया सलतनत के दौरान ही शायद यह नाम दिया गया था। मुगल बादशाह जहांगीर को आंखों की तकलीफ थी और कहते हैं कि यहीं पर उनकी आंखों का ईलाज हुआ था। हिंदु पुजारी ने उन्हें चिनाब से आंखों को धोने का परामर्श दिया और चिनाब के ठंडे पानी से जहांगीर को शीतलता मिली और वो इस नदी के जादुई पानी की कायल हो गया। अखनूर शहर जम्मू से मात्र 28 कलोमीटर की दूरी पर है।

महाभारत से संबंध
कहते हैं कि अखनूर महाभारत काल का विराट नगर था। पांडवों ने अपने अज्ञातवास के एक वर्ष को यहीं गुजारा था। उस समय चिनाब दरिया का नाम चंद्रभागा था। अखनूर के जिया पोता ााट के पास ही पांडव गुफा भी है। भगवान कृृष्ण पांडवों से मिलने इसी गुफा में आते थे। इस घाट पर चिनाब दरिया बिल्कुल शांत स्वर में है। पांडवों ने ही उसे शांत रहने का आदेश दिया था ताकि वे शांति से यहां रह सकें।

जिया पोता घाट
जिया पोता का डोगरा शासनकाल में बहुत अहम स्थान है। पंजाब के शासक महाराजा रंजीत सिंह ने इसी घाट पर 7 जून 1822 को महाराजा गुलाब सिंह का अभिषेक किया था और उन्हें जम्मू कश्मीर का राजा घोषित किया था। इस दिन को आज भी जिया पोता घाट पर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
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अम्बारां
अखनूर में हुई खुदाई इस बात की साक्षी है कि सिंधु घाटी सभ्यता और मांडा का अंतिम गढ़ यहीं था। घाट से करीब एक किलोमीटर दूर है बौद्ध मठ और स्तूपों के अवशेष। वहीं अम्बारां में भी खुदार्ठ के दौरान पहली शताब्दी के समय के बौद्ध मठों के अवशेष मिल हैं और इस स्थान को ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर सहेजा गया है।
