Edited By Anil dev,Updated: 23 Jul, 2019 05:27 PM
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो रोज पहले कश्मीर को लेकर जो ब्यान दिया है उसे लेकर पूरे विश्व में घमासान मचा हुआ है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ बातचीत के बाद उनका यह दावा कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर मुद्दे पर...
नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो रोज पहले कश्मीर को लेकर जो ब्यान दिया है उसे लेकर पूरे विश्व में घमासान मचा हुआ है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ बातचीत के बाद उनका यह दावा कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर मुद्दे पर उनसे (ट्रम्प से ) मध्यस्थता का अनुरोध किया था, जबरदस्त बहस का विषय बना हुआ है। एक बारगी तो इस ब्यान ने भारत के शासकीय और प्रशासकीय गलियारों में सुनामी ही लाकर रख दी। हालांकि ट्रम्प के इस ब्यान की हवा जल्दी ही निकल गई। भारत ने इसका न सिर्फ कड़ा विरोध किया बल्कि इसे सिरे से खारिज भी किया। दिलचस्प ढंग से ट्रंप ने जापान में जी 20 बैठक के दौरान मोदी से जिस मुलाकात का जिक्र किया था वही उनके ब्यान को झूठा साबित करने वाली बन गई। ओसाका शहर में हुई यह बातचीत अनौपचारिक नहीं थी।
औपचारिक वार्ता में दोनों देशों के अधिकारी भी मौजूद रहते हैं और मीटिंग के मिनट्स की बाकायदा डाक्यूमेंटेशन होती है। ऐसे में इतनी बड़ी बात हुई हो और दर्ज न हुई हो यह संभव ही नहीं। भारत तो क्या अमेरिकी विदेश मंत्रालय के दस्तावेजों में भी ऐसी कोई बात दर्ज नहीं है। इसका आधिकारिक खुलासा और अमेरिकी विदेशमंत्रालय की तरफ से इसकी स्वीकारोक्ति भी हो चुकी है। ट्रम्प प्रशासन अब यह कहकर पिंड छुड़वाने की कोशिश कर रहा है कि सन्दर्भों को गलत ढंग से समझने के कारण ऐसा हुआ। हालांकि एक बार फिर बता दें कि उस मीटिंग के मिनट्स में कहीं भी कश्मीर शब्द तक दर्ज नहीं है, कश्मीर पर चर्चा तो दूर की बात है। जाहिर है ट्रम्प ने एक और शिगूफा छोड़ा है ,जैसा कि वे आदतन करते रहे हैं।
पर ट्रम्प ने ऐसा क्यों किया?
अब जबकि दोनों देशों के सम्बंधित मंत्रालयों की डाक्यूमेंटेशन से यह साफ हो गया है कि ट्रम्प का यह दावा झूठा है तो सवाल यह है कि आखिर ट्रम्प ने ऐसा क्यों किया? क्यों उन्होंने कश्मीर मसले का जिक्र किया? दरअसल यह सब उनकी प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा है। यह महज नहीं था बल्कि सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। अमेरिका नहीं चाहता कि भारत और रूस एकदूसरे के करीब बने रहें। हाल ही में अमेरिका की वजह से दोनों देशो के बीच आंशिक मतभेदों की खबरें भी आई थीं। ट्रम्प उस खाई को चौड़ा करते इसे पहले ही भारत ने रूस के साथ एस -400 जैसा सैन्य सौदा करके सभी संभावनाओं को खत्म कर दिया। उधर ईरान के मामले में भी भारत ने अमेरिका का साथ नहीं दिया। इससे ट्रम्प चिढ़े हुए हैं। अमेरिका को अपने सियासी और आर्थिक हित्त प्रभावित होते दिख रहे हैं। यही वजह यही कि उसने इस बहाने भारत को एक सन्देश दिया है कि अगर मोदी सरकार उसके अनुरूप नहीं चलती तो अमरीका कश्मीर जैसे मसले उठाकर विवाद को हवा देने से गुरेज नहीं करेगा।
यही नहीं चीन की विस्तारवादी नीति को झटका देने के मकसद से ट्रम्प ने इस बहाने पाकिस्तान को खुश करने की भी कोशिश की है। पाकिस्तान तो वैसे भी अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अलग-थलग है। ऐसे में उसे अगर अमेरिका का साथ मिलता है तो उसकी तो पौ बारह ही होगी। दूसरे अमेरिका अब कहीं न कहीं अफगानिस्तान पर पकड़ बनाए रखने के लिए भी पाकिस्तान का साथ चाहता है। चीन और यहां तक कि भारत पर दबाव बनाये रखने के लिहाज से अफगानिस्तान उसके लिए सामरिक रूप से काफी अहम् है। लेकिन अफगानिस्तान की भारत से बढ़ती नजदीकियां उसे भी परेशान कर रही हैं। यहां तक कि अब उसे तालिबान आतंकी नहीं लगते। ऐसे में अफगानिस्तान में अमेरिका की दखल का बरकरार रहना पाकिस्तान के रास्ते ही संभव है। भारत तो स्वतंत्र विदेश नीति के तहत अमेरिका को भाव देने से रहा। इसलिए जनाब यह महज बात को समझ नहीं पाने की वजह से नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत दिया गया ब्यान है।