अमरीका के वैज्ञानिकों का खुलासा सदी के अंत तक, भीषण गर्मी से हो सकती है 1 करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत

Edited By Mahima,Updated: 24 Mar, 2024 09:51 AM

american scientists reveal that by the end of the century

अमरीका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि सदी के अंत यानी 2100 तक ज्यादा गर्मी से 1.15 करोड़ लोगों की मौत हो सकती है।

नेशनल डेक्स: अमरीका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि सदी के अंत यानी 2100 तक ज्यादा गर्मी से 1.15 करोड़ लोगों की मौत हो सकती है। यह गर्मी फॉसिल फ्यूल  के उत्सर्जन से पैदा होगी। अध्ययन के अनुसार अगर 2050 तक उत्सर्जन का लेवल यही रहा तो 2100 तक गर्मी अपने घातक लेवल तक पहुंच जाएगी, जिसके कारण करोड़ों जान जाने का खतरा है।

कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन सबसे ऊपर
शोधकर्ताओं का कहना है कि फॉसिल फ्यूल के उत्सर्जन से गर्मी के लेवल में 0.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी भी खतरनाक होगी। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के कार्बन मॉडल से पता चला कि प्रत्येक मिलियन टन कार्बन में बढ़ोतरी से दुनियाभर में 226 ज्यादा हीटवेव की घटनाएं बढ़ेंगी। फॉसिल फ्यूल से कार्बन उत्सर्जन के मामले में वर्तमान में चीन सबसे ऊपर है। वह कुल उत्सर्जन के 31 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। इसके बाद अमरीका 26 फीसदी और रूस 20 फीसदी के लिए जिम्मेदार है।

कार्बन उत्सर्जन को 43 फीसदी करना होगा कम
जर्नल अर्थ सिस्टम साइंस डाटा में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2023 में 36.8 अरब मीट्रिक टन का कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन हुआ है। यह 2022 से 1.1 फीसदी अधिक है। यूरोपीय देशों में स्थापित तेल कंपनियों से भी भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है। इनसे उत्पादित जीवाश्म ईंधन से 2050 तक वायुमंडल में 51 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन बढ़ा देंगे. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति (आई.पी.सी.सी.) ने कहा कि धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है, तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 43 फीसदी तक घटाना होगा। हालांकि उत्सर्जन का लेवल पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ा है।

गरीब और कमजोर लोग होंगे ज्यादा प्रभावित
शोधकर्ताओं ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में तीव्र और घातक हीटवेव ने लगभग हर महाद्वीप को प्रभावित किया है। इससे जंगल में आग लगने से हजारों लोगों की जान चली गई। वहीं यूरोप में भीषण गर्मी के प्रकोप से 2022 में 60 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। हीटवेव या गर्मी का ज्यादा असर सबसे गरीब और कमजोर लोगों पर पड़ता है। इससे बेघर लोगों, बाहर काम करने वालों और बुजुर्गों को अधिक दिक्कत होती है। दक्षिण एशिया देशों में हीटवेव के कारण सूखे के लेवल में बढ़ोतरी हुई है, जिससे 1 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हीटवेव एक गंभीर खतरा है, और इसके लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है। शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि हमें फॉसिल फ्यूल पर अपनी निर्भरता कम करने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने की आवश्यकता है, साथ ही हमें गरीब और कमजोर समुदायों को हीटवेव से बचाने के लिए भी कदम उठाने होंगे।

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