जाति जनगणना पर आनंद शर्मा ने उठाए सवाल, बोले- "ना जात पर, न पात पर, मोहर लगेगी हाथ पर" कांग्रेस का ही था नारा

Edited By Mahima,Updated: 22 Mar, 2024 10:38 AM

anand sharma raised questions on caste census said no on caste no on caste

आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राहुल गांधी जहां भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान जाति जनगणना की वकालत करते रहे हैं, वहीं कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य आनंद शर्मा ने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखकर जाति जनगणना कराने के लिए पार्टी के...

नेशनल डेस्क: आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर राहुल गांधी जहां भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान जाति जनगणना की वकालत करते रहे हैं, वहीं कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य आनंद शर्मा ने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखकर जाति जनगणना कराने के लिए पार्टी के आक्रामक अभियान पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री शर्मा ने पत्र में लिखा है कि पार्टी कभी भी पहचान की राजनीति में शामिल नहीं हुई और न ही इसका समर्थन किया है।

उन्होंने अपने पत्र में इंदिरा गांधी हवाला देते हुए कहा है कि 1980 के लोकसभा चुनावों में उनका नारा था "ना जात पर, न पात पर, मोहर लगेगी हाथ पर" और सितंबर 1990 में राजीव गांधी ने लोकसभा में एक चर्चा के दौरान भाषण देते हुए कहा था कि  "अगर हमारे देश में जातिवाद को स्थापित करने के लिए जाति को परिभाषित किया जाता है तो हमें समस्या है..."

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भेदभाव के खिलाफ थे राष्ट्रीय आंदोलन के नेता
आनंद शर्मा का कहना है कि गठबंधन में वे दल भी शामिल हैं जिन्होंने लंबे समय से जाति-आधारित राजनीति की है। हालांकि, सामाजिक न्याय पर कांग्रेस की नीति भारतीय समाज की जटिलताओं की परिपक्व और समझ पर आधारित है। राष्ट्रीय आंदोलन के नेता उन लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए दृढ़ता से प्रतिबद्ध थे जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से भेदभाव का सामना किया था। जैसा कि संविधान में निहित है कि सकारात्मक कार्रवाई अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान करती है। यह भारतीय संविधान निर्माताओं के सामूहिक ज्ञान को दर्शाता है। दशकों बाद ओ.बी.सी. को एक विशेष श्रेणी के रूप में शामिल किया गया और तदनुसार आरक्षण का लाभ दिया गया।

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जाति जनगणना बेरोजगारी का हल नहीं
शर्मा ने कहा कि जाति जनगणना न तो रामबाण हो सकती है और न ही बेरोजगारी और मौजूदा असमानताओं का समाधान हो सकती है। अपने पत्र में उन्होंने कहा कि विभाजनकारी एजेंडा, लैंगिक न्याय के मुद्दे, बेरोजगारी, मुद्रास्फीति और बढ़ती असमानता कांग्रेस, उसके गठबंधन सहयोगियों और प्रगतिशील ताकतों की साझा चिंताएं हैं। उन्होंने कहा है कि भले ही जाति भारतीय समाज की एक वास्तविकता है, लेकिन कांग्रेस कभी भी पहचान की राजनीति में शामिल नहीं हुई है और न ही इसका समर्थन करती है।

 क्षेत्र, धर्म, जाति और जातीयता की समृद्ध विविधता वाले समाज में यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। एक राष्ट्रीय पार्टी के प्रतिनिधि रूप में कांग्रेस ने समावेशी दृष्टिकोण में विश्वास किया है, जो गरीबों और वंचितों के लिए समानता और सामाजिक न्याय के लिए नीतियां बनाने में भेदभाव रहित है। शर्मा ने पत्र में लिखा कि मेरी विनम्र राय में इसे इंदिरा जी और राजीव जी की विरासत का अपमान माना जाएगा।

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जनगणना में एस.सी. और एस.टी का ही प्रावधान
उनके अनुसार कांग्रेस गरीबों और वंचितों के हितों के प्रति संवेदनशील रही है और उनके सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध है। यू.पी.ए. सरकार ने मनरेगा और खाद्य सुरक्षा के अधिकार के साथ परिवर्तन लाया जिससे राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा का निर्माण हुआ। यू.पी.ए. द्वारा 14 करोड़ लोगों को गरीबी के जाल से बाहर लाना एक गौरवपूर्ण उपलब्धि थी। आनंद शर्मा ने कहा कि सकारात्मक कार्रवाई के लिए सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन हमेशा से एकमात्र मार्गदर्शक मानदंड रहा है। 

यह उल्लेख करना आवश्यक है कि जातिगत भेदभाव की गणना करने के लिए आखिरी जनगणना 1931 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई थी। स्वतंत्रता के बाद सरकार द्वारा एक सचेत नीतिगत निर्णय लिया गया कि जनगणना में एस.सी. और एस.टी. को छोड़कर जाति-संबंधित प्रश्नों को शामिल नहीं किया जाएगा, जो राज्यों द्वारा एकत्र किए जाते हैं। 

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