आंध्र प्रदेश के सीएम बने जगनमोहन रेड्डी, ‘सब्र' और ‘संघर्ष' से यूं पहुंचे फर्श से अर्श तक

Edited By Seema Sharma,Updated: 30 May, 2019 04:37 PM

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वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख येदुगुरी संदिंटि जगनमोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री के तौर पर गुरुवार को शपथ ली। राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन विजयवाड़ा के समीप आईजीएमसी स्टेडियम में एक भव्य समारोह में 46 वर्षीय नेता

अमरावतीः वाईएसआर कांग्रेस प्रमुख येदुगुरी संदिंटि जगनमोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री के तौर पर गुरुवार को शपथ ली। राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन विजयवाड़ा के समीप आईजीएमसी स्टेडियम में एक भव्य समारोह में 46 वर्षीय नेता को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेड्डी को बधाई देते हुए कहा कि राज्य के विकास में पूर्ण सहयोग करेंगे। रेड्डी की पार्टी ने हाल ही में हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की है। वाईएसआर कांग्रेस ने राज्य विधानसभा की 175 में से 151 सीटों पर जीत दर्ज की। साथ ही उसने 25 लोकसभा सीटों में से 22 पर जीत हासिल की।


‘सब्र' और ‘संघर्ष' से फर्श से अर्श तक पहुंचे रेड्डी
पिता राजशेखर रेड्डी के अचानक निधन के बाद कांग्रेस आलाकमान की उपेक्षा तथा आय से अधिक संपत्ति मामले में जेल जाने से ले कर नई पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के गठन तक जगनमोहन रेड्डी ने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखा लेकिन आखिरकार उनके सब्र और ‘संघर्ष' ने उन्हें आज मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया। छोटे कारोबारी से शक्तिशाली नेता तक के दो दशक लंबे अपनी करियर में वाईएसआर कांग्रेस अध्यक्ष जगनमोहन रेड्डी ने अच्छे और बुरे दिन दोनों देखे हैं। कारोबारी के रूप में रेड्डी का एक दशक तक का करियर बिना किसी परेशानी वाला था लेकिन दूसरे दशक में राजनीति में आने के बाद उनकी जिन्दगी काफी उथल-पुथल भरी रही।
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खड़ी की अपनी अलग पार्टी
वाईएसआर कांग्रेस ने पांच साल पहले तेलंगाना के गठन के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने एन. चन्द्रबाबू नायडू की तेदेपा को बुरी तरह हराया है। दरअसल 10 साल के इंतजार के बाद यह खुशी का यह पल 47 वर्षीय नेता के जीवन में आया है। आंध्र प्रदेश (अविवाभाजित) के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वाई एस राजशेखर रेड्डी के इकलौते बेटे जगनमोहन रेड्डी ने अपना कारोबारी करियर 1999-2000 में पड़ोसी राज्य कर्नाटक में संदूर नाम की एक पावर कंपनी स्थापित कर शुरू किया था। इस कंपनी को उन्होंने पूर्वोत्तर भारत तक पहुंचाया। उनके पिता राजशेखर रेड्डी के 2004 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका कारोबार फलने-फूलने लगा और उन्होंने सीमेंट संयंत्र, मीडिया और विनिर्माण क्षेत्र में भी प्रसार शुरू किया। जगन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का पहली बार 2004 में पता चला। उन्होंने कडप्पा से सांसद बनने की कोशिश की थी लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने उनकी इस इच्छा को वहीं दफन कर दिया। इसके बाद उन्हें अपना सपना पूरा करने के लिए 2009 तक प्रतीक्षा करनी पड़ी और आखिरकार कडप्पा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज कर उन्होंने राजनीति में कदम रखा। लेकिन 2009 में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनके पिता की मौत के बाद उनके लिए सब कुछ बदल गया। रेड्डी मुख्यमंत्री बनने के लिए सोनिया गांधी से भी मिले लेकिन उनकी बात नहीं बनी। उन्हें पिता की मौत के बाद राज्य में श्रद्धांजलि यात्रा तक निकालने की अनुमति नहीं मिली। हालात ऐसे हो गए कि 177 में से 170 विधायकों ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया। इसके बावजूद कांग्रेस ने सबकुछ नजरंदाज कर रोसैय्या को राज्य का नया मुख्यमंत्री बना दिया। इस फैसले से नाराज रेड्डी ने कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी के गठन का ऐलान किया। रेड्डी ने साल 2011 में अपने पिता के नाम पर वाईएसआर कांग्रेस का गठन किया और अपने बूते पर राजनीतिक संघर्ष शुरू कर दिया।
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341 दिन की पदयात्रा की
18 कांग्रेस विधायकों के कांग्रेस छोड़कर वाईएसआर में आने के बाद वहां इन सीटों पर साल 2012 में उपचुनाव हुए। इस उपचुनाव में जगहमोहन रेड्डी की पार्टी ने सबको चौंका दिया और 18 में से 15 सीटों पर जीत दर्ज कर ली। इसके बाद रेड्डी कांग्रेस और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी तेदेपा से टक्कर लेते रहे जिस दौरान उन्हें जेल तक जाना पड़ा। इस दौरान वह 2014 के चुनाव में तेदेपा के हाथों हार गए। राजनीति का गणित समझने में रेड्डी के लिए उनकी 341 दिन की पदयात्रा बेहद महत्वपूर्ण रही। 2014 की हार के बाद रेड्डी ने जनता तक पहुंचने और लोगों से मिलकर उन्हें समझने और समझाने के लिए नवंबर 2017 से कडप्पा जिले के इडुपुलापाया से पदयात्री शुरू की। इस दौरान वह राज्य के 134 विधानसभा क्षेत्रों में गए जहां उन्होंने करीब दो करोड़ लोगों से भेंट की। उनकी इस यात्रा ने लोगों को उनसे जोड़ा। उनकी पदयात्रा जनवरी 2019 में समाप्त हुई।

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