आंध्र में सत्ता विरोधी लहर वाई.एस.आर. कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती

Edited By Mahima,Updated: 22 Mar, 2024 09:56 AM

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आंध्र प्रदेश में इस बार एक साथ होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में  वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाई.एस.आर.सी.पी.) को सत्ता विरोधी लहर के साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

नेशनल डेस्क: आंध्र प्रदेश में इस बार एक साथ होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में  वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाई.एस.आर.सी.पी.) को सत्ता विरोधी लहर के साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। जानकारों का कहना है कि सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए इस बार पार्टी ने वर्तमान में कई विधायकों और सांसदों के टिकट काट दिए हैं। कुछ के चुनावी क्षेत्रों को बदल भी दिया है जिसके चलते कई नेता पार्टी छोड़ कर दूसरे राजनीतिक दलों में भी चले गए हैं।वाई.एस.आर.सी.पी. प्रमुख ने पिछले सप्ताह सभी 175 विधानसभा और 24 लोकसभा सीटों के लिए घोषित उम्मीदवारों की सूची में 14 मौजूदा सांसदों और 37 विधायकों के टिकट काट दिए हैं।

कल्याणकारी योजनाओं के भरोसे जगन सरकार
2019 के चुनावों में वाई.एस.आर.सी.पी. 50 फीसदी से कम वोट शेयर के साथ 22 लोकसभा और 151 विधानसभा सीटें जीतकर सत्ता में आई थी। उस समय एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी (टी.डी.पी.) 39.1 फीसदी वोट शेयर के साथ केवल 3 लोकसभा और 23 विधानसभा सीटों पर सिमट गई थी। इस बार मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी अपनी कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से राज्य में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यकों के समर्थन पर भरोसा कर रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो भाजपा और पवन कल्याण की जन सेना पार्टी (जे.एस.पी.) के गठबंधन का नेतृत्व करने वाली टी.डी.पी. अब राज्य में अब पुनर्जीवित होती दिख रही है। दूसरा वाई.एस.आर.सी.पी. को आंध्र प्रदेश कांग्रेस प्रमुख और जगन की बहन वाई.एस. शर्मिला के पार्टी के वोट आधार में सेंध लगाने की संभावनाएं भी बनी हुई हैं।

आंध्र प्रदेश की साझा राजधानी भी मुद्दा
विशाखापत्तनम के एक वाई.एस.आर.सी.पी. पदाधिकारी के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि सी.एम. जगन के इरादों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है, लेकिन एक नेता के चुनाव क्षेत्र को बदलते समय उसके गढ़ को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
सत्तारूढ़ पार्टी के सामने एक और चुनौती श्रीकाकुलम, विजयनगरम, पूर्व और पश्चिम गोदावरी और विशाखापत्तनम के अविभाजित जिलों में टी.डी.पी. के गढ़ों में जीत को बरकरार रखना है, जिसे उसने 2019 में जीत लिया था। वाई.एस.आर.सी.पी. को राजधानी के मुद्दे से भी जूझना पड़ रहा है। दरअसल हैदराबाद का  2 जून के बाद तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की साझा राजधानी के रूप में अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। उन्होंने विशाखापत्तनम से दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली थी।

टी.डी.पी.-जे.एस.पी. को यहां होगा फायदा
दूसरी ओर टी.डी.पी.-जे.एस.पी. और भाजपा के शामिल होने से इस गठबंधन की ताकत बढ़ी है। वह वाई.एस.आर.सी.पी. सरकार को सत्ता से हटाने के लिए अन्य चीजों के अलावा कम्मा-कापू वोटरों को एकजुट करना चाह रही है। कम्मा नायडू समुदाय से संबंध रखते हैं, जो टीडीपी के पारंपरिक समर्थक हैं। आंध्र प्रदेश में कम्पा समुदाय की आबादी लगभग 5 फीसदी है। जबकि  पवन कल्याण कापू समुदाय से आते हैं, जो राज्य की आबादी का लगभग 18 फीसदी हैं। हालांकि कम्मा और कापू समुदायों को पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी माना जाता है, लेकिन टी.डी.पी.-जे.एस.पी. दोनों का मानना है कि नायडू-कल्याण गठबंधन से भी दोनों समुदायों के मतदाताओं का एकीकरण होगा।

बिना गठबंधन के हार गई थी  टी.डी.पी.
टी.डी.पी.  2014 में भाजपा के साथ गठबंधन में 102 विधानसभा और 16 लोकसभा सीटें जीतकर सत्ता में आई थी। पांच साल बाद 2019 में अकेले चुनाव लड़ने पर उसे हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि भाजपा के नेताओं का कहना है कि इस बार टी.डी.पी.-जे.एस.पी. गठबंधन में कोई समस्या नहीं है। हम लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा की भी अधिकतम संख्या में सीटें जीतेंगे। टी.डी.पी. भी अपने प्रतिद्वंद्वी के दलबदलुओं और विद्रोहियों को पार्टी में समायोजित करने की तैयारी कर रही है। अधिकांश असंतुष्ट वाई.एस.आर.सी.पी. नेता टी.डी.पी. में शामिल होने की सोच रहे हैं, जबकि कुछ भाजपा और जे.एस.पी. की ओर जा रहे हैं।

विभाजन के बाद राष्ट्रीय दल हाशिए पर
2014 में अपने विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश में क्षेत्रीय संगठनों का प्रभुत्व देखा गया है, कांग्रेस और भाजपा दोनों राज्य में किनारे हो गए हैं। भाजपा को 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में 1 फीसदी से भी कम औसत वोट शेयर के साथ एक भी सीट नहीं मिली, जो नोटा से भी कम है, जबकि 2014 के चुनावों में पार्टी ने 2 फीसदी वोटों के साथ दो लोकसभा और चार विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। कांग्रेस 2014 के चुनावों के बाद से राज्य में एक भी विधानसभा या लोकसभा सीट नहीं जीत पाई है, उसका औसत वोट शेयर 2014 में 2.5 फीसदी से घटकर 2019 में 1 फीसदी से थोड़ा सा अधिक हो गया है।

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