7 साल में आम भारतीय की सैलरी में मामूली बढ़ोतरी, सरकारी रिपोर्ट ने उठाया नौकरियों पर बड़ा सवाल

Edited By Updated: 05 Oct, 2025 03:21 PM

average indian salary has seen little increase in the past seven years

हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट ने देश के आम लोगों की आमदनी और खर्चों की स्थिति को लेकर चिंता बढ़ा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सात सालों में कर्मचारियों की औसत सैलरी में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इतनी कम कि महंगाई के बढ़ते दबाव के सामने इसका असर...

नेशनल डेस्क: हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट ने देश के आम लोगों की आमदनी और खर्चों की स्थिति को लेकर चिंता बढ़ा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सात सालों में कर्मचारियों की औसत सैलरी में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इतनी कम कि महंगाई के बढ़ते दबाव के सामने इसका असर बहुत सीमित रहा।

कर्मचारियों की सैलरी पर नजर
रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई-सितंबर 2017 में नियमित वेतन पाने वाले कर्मचारियों की औसत मासिक सैलरी लगभग ₹16,538 थी। वहीं, अप्रैल-जून 2024 तक यह बढ़कर ₹21,103 हो गई। यानी कुल मिलाकर 7 साल में औसत सैलरी में सिर्फ ₹4,565 की बढ़ोतरी हुई, जो करीब 27.6% की वृद्धि के बराबर है।
दूसरी ओर, दिहाड़ी मजदूरों की रोज़ाना कमाई ₹294 से बढ़कर ₹433 हो गई है। प्रतिशत के हिसाब से बढ़ोतरी ठीक लगती है, लेकिन लगातार बढ़ती महंगाई के कारण आम आदमी की जेब पर इसका बहुत कम असर पड़ता है।


बेरोजगारी में कमी, लेकिन सैलरी में बड़ा फर्क नहीं
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि देश में बेरोजगारी दर में गिरावट आई है। 2017-18 में बेरोजगारी दर 6% थी, जो अब घटकर 3.2% हो गई है। युवाओं की बेरोजगारी भी 17.8% से घटकर 10.2% हो गई है, जो वैश्विक औसत से कम है।
पुरुषों की बेरोजगारी अगस्त 2025 तक 5% तक पहुंच गई, जो पिछले चार महीनों में सबसे कम है। हालांकि, नौकरी मिलने की खबर अच्छी है, लेकिन सवाल यह है कि ये नौकरियां कितनी स्थिर और अच्छी सैलरी देती हैं, ताकि बढ़ते खर्चों और महंगाई को पूरा किया जा सके।


EPFO के आंकड़े दिखाते रोजगार में वृद्धि
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के आंकड़े भी रोजगार में बढ़ोतरी की ओर इशारा कर रहे हैं। वित्त वर्ष 2024-25 में अब तक 1.29 करोड़ नए सदस्य जुड़ चुके हैं। सितंबर 2017 से अब तक कुल 7.73 करोड़ से अधिक नए सब्सक्राइबर EPFO में शामिल हो चुके हैं। सिर्फ जुलाई 2025 में ही 21.04 लाख नए लोग EPFO में शामिल हुए, जिनमें 60% से ज्यादा युवा हैं।

स्वरोजगार की ओर बढ़ता रुझान
रिपोर्ट में यह भी देखा गया है कि अब अधिक लोग स्वरोजगार और छोटे व्यवसाय की ओर बढ़ रहे हैं। 2017-18 में स्वरोजगार करने वालों का हिस्सा 52.2% था, जो अब बढ़कर 58.4% हो गया है। वहीं, कैजुअल लेबर की संख्या घटकर 19.8% रह गई है। यह संकेत है कि कई लोग स्थिर नौकरी की कमी के कारण खुद का व्यवसाय शुरू कर रहे हैं।
 

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