क्या मोदी की वापसी से गहराएगा कांग्रेसी सरकारों पर खतरा?

Edited By Anil dev,Updated: 20 Apr, 2019 08:43 AM

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2019 का चुनाव कांग्रेस के लिए सभी मायनों में ‘करो या मरो’ जैसा है। लोकसभा के इस अहम चुनाव में कांग्रेस की शिकस्त उसे दिल्ली के सिंहासन से तो दूर ले ही जाएगी अपितु उसकी राज्य सरकारों पर भी खतरे के बादल गहरा जाएंगे।

जालन्धर(महिन्द्र ठाकुर): 2019 का चुनाव कांग्रेस के लिए सभी मायनों में ‘करो या मरो’ जैसा है। लोकसभा के इस अहम चुनाव में कांग्रेस की शिकस्त उसे दिल्ली के सिंहासन से तो दूर ले ही जाएगी अपितु उसकी राज्य सरकारों पर भी खतरे के बादल गहरा जाएंगे। भले ही कांग्रेस छत्तीसगढ़, राजस्थान व मध्य प्रदेश जैसे मजबूत भगवा दुर्गों को भेद कर वहां अपनी सरकार बनाने में सफल जरूर हुई लेकिन छत्तीसगढ़ को छोड़ कर बाकी जगह उसे उतना प्रचंड बहुमत नहीं मिला जो पार्टी को अस्थिरता के भंवर से उबार दे। 

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कहने को तो वर्तमान में 5 राज्यों पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक में कांग्रेसी राज है लेकिन छत्तीसगढ़ व पंजाब को छोड़ कर बाकी सभी राज्यों में कांग्रेस की ये सरकारें सहयोगियों के समर्थन की बैसाखियों पर टिकी हैं। भले ही कर्नाटक में कांग्रेस ने बड़े नाटकीय अंदाज में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए अपने से कई गुणा छोटी पार्टी के नेता कुमारस्वामी को सी.एम. तो बना दिया लेकिन पार्टी इस बात को यकीनी नहीं बना सकी कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर जाए। कभी विधायकों की परेड तो कभी खरीद-फरोख्त के आरोप। सी.एम. कुमारस्वामी खुद कई बार सार्वजनिक मंचों से रो-रो कर यह बात कह चुके हैं कि विपक्ष व विरोधी मेरी सरकार को अस्थिर करने के षड्यंत्र रच रहे हैं। कर्नाटक में जो दीगर बात है वह यह कि वहां कांग्रेस अपने ही कुनबे को संभाल नहीं पा रही है। 

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कुछ इसी तरह की रस्साकशी मध्य प्रदेश में भी चल रही है। यहां के सी.एम. कमलनाथ भी आए दिन भाजपा पर आरोप दाग रहे हैं कि  पार्टी हमारी सरकार को गिराने की फिराक में है। पर वास्तव में मध्य प्रदेश में भी सरकार को जितना खतरा अपनों से है उतना शायद बेगानों से नहीं है। यहां भी कांग्रेस धड़ों में बंटी है। ऊपर से कभी माया की धमकी तो कभी अखिलेश की। जहां तक बात राजस्थान की है तो हालांकि वहां कर्नाटक व मध्य प्रदेश जैसी खींचतान तो नहीं है पर वहां भी कांग्रेस केवल उतना ही समर्थन जुटा पाई जितना जरूरी था। 

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ऐसे में गहलोत के लिए पांच साल सरकार चलाना किसी चुनौती से कम नहीं है। ऊपर से तुर्रा यह कि यहां भी कांग्रेस गहलोत व पायलट खेमों में बंटी है। वहीं सपा व बसपा जैसे सहयोगी दल यहां भी गाहे-बगाहे सरकार को धमकाते रहते हैं। चूंकि राजनीति में जब तक कोई दल जीत रहा होता है  तब तक उसकी कमियां भी खूबियां बन जाती हैं लेकिन जैसे ही आप हार से रू-ब-रू होते हैं वैसे ही पार्टी में असंतोष चरम पर पहुंच जाता है। सहयोगी भी बेगाने हो जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान के समक्ष यह यक्ष प्रश्न अभी भी मुंह बाए खड़ा है कि अगर लोकसभा चुनावों में मोदी सरकार की वापसी होती है तो वह किस तरह से सहयोगियों के समर्थन की बैसाखियों पर टिकी सरकारों को बचाएगी? 

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