लॉकडाउन में एक किताब के रूप में सामने आया दिल्ली दंगों का सच

Edited By Anil dev,Updated: 20 Aug, 2020 12:16 PM

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दिल्ली दंगों का सच अब एक किताब के रूप में सामने आ गया है और कल उसका राजधानी में लोकार्पण किया जा रहा है । इस किताब में दिल्ली दंगे की जांच एक निष्पक्ष एजेंसी से कराने की मांग की गई है। उत्तर पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी की रात हुए दंगे पर दिल्ली...

नई दिल्ली: दिल्ली दंगों का सच अब एक किताब के रूप में सामने आ गया है और कल उसका राजधानी में लोकार्पण किया जा रहा है । इस किताब में दिल्ली दंगे की जांच एक निष्पक्ष एजेंसी से कराने की मांग की गई है। उत्तर पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी की रात हुए दंगे पर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर यह किताब लॉकडाउन में तैयार की गई है । किताब में अल्पसंख्यक आयोग की पूरी रिपोर्ट हिंदी में प्रकाशित की गई है। इस किताब की भूमिका सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी विजय सिंह सिंह ने लिखी है और संपादन राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सम्पादक एवं पत्रकार पंकज चतुर्वेदी ने किया है। लोकमित्र प्रकाशन प्रकाशित इस किताब को तैयार करने में नौ अन्य पत्रकारों और कार्यकर्ताओं ने मदद की है। 

सेवानिवृत पुलिस: अधिकारी सिंह ने किताब की भूमिका में लिखा है कि इस दंगे में कुल 751 अपराधिक मामले दर्ज किए गए थे और इन दंगों में 52 लोग मारे गए थे। इस दंगे में 473 लोग घायल हुए थे। इसके अलावा 185 घर बर्बाद हुए और 19 धर्मिक स्थल भी को नुकसान पहुंचाया गया था, लेकिन दिल्ली पुलिस ने दंगे के सम्बंध में अल्पसंख्यक आयोग के किसी पत्र का उत्तर तक नहीं दिया । आयोग के जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दिल्ली के उत्तर पूर्वी जिले में फरवरी में हुए दंगे सुनियोजित और संगठित लगते हैं। यह दंगे अल्पसंख्यक समुदाय को और निशाना बनाकर किए गए थे । आयोग ने सरकार और अदालत से अनुरोध किया था कि उच्च न्यायालय के किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में 15 सदस्यीय जांच दल बनाकर इस दंगे की जांच की जाए। यह दल दंगे के दौरान एफ आई आर नहीं लिखने ,चार्जशीट की मॉनिटरिंग, गवाहों की सुरक्षा ,दिल्ली पुलिस की भूमिका और उसके खिलाफ उचित कारर्वाई जैसे मामलों में जांच कर अपना फैसला ले। 

आयोग ने मुआवजा क्षतिग्रस्त धार्मिक स्थलों की मरम्मत जैसे मामलों में भी कई सुझाव दिए थे लेकिन दिल्ली पुलिस ने दिल्ली उच्च न्यायालय में पेश किए गए एक हलफनामे में कहा था कि अब तक उन्हें ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सके कि बीजेपी नेता कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर ने किसी भी तरह लोगों को भड़काया हो या दिल्ली में दंगे करने के लिए उकसाया हो। लेकिन आयोग के जांच दल ने इस हलफनामे के तथ्यों के विपरीत साक्ष्य पेश किए थे। किताब के सम्पादक पंकज चतुर्वेदी ने भी अपने संपादकीय में दिल्ली दंगों की जांच कराने की मांग की है और कहा है कि दंगे मानवता के नाम पर कलंक है। धर्म भाषा मान्यताओं रंग जैसी विषमताओं के साथ मत विभाजन होना स्वभाविक है लेकिन सरकार व पुलिस में बैठाएक वर्ग सांप्रदायिक हो जाता है तो उसका सीधी असर गरीब और अशिक्षित वर्ग पर पड़ता है । इसलिए आज जरूरी हो गया है कि दिल्ली दंगों की जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से करवाई जाए। यदि उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान न्यायाधीश इसकी अगुवाई करें तो बहुत उम्मीदें बनती हैं।


 

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