गुजरात : राजपूतों के विरोध के बावजूद रुपाला ही रहेंगे राजकोट सीट से भाजपा के उम्मीदवार

Edited By Utsav Singh,Updated: 15 Apr, 2024 01:48 PM

despite opposition from rajputs rupala will remain bjp candidate

गुजरात की राजकोट लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रत्याशी परषोत्तम रूपाला का क्षत्रिय समुदाय द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद राजनीतिक विश्लेषकों और मतदाताओं को यकीन है कि केंद्रीय मंत्री चुनाव में विजयी होंगे।

नेशनल डेस्क : गुजरात की राजकोट लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रत्याशी परषोत्तम रूपाला का क्षत्रिय समुदाय द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद राजनीतिक विश्लेषकों और मतदाताओं को यकीन है कि केंद्रीय मंत्री चुनाव में विजयी होंगे। विश्लेषकों ने जहां दावा किया कि राजकोट भाजपा का ‘‘अभेद्य किला'' है वहीं मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों की प्रशंसा की। रूपाला ने हाल में यह दावा करके विवाद पैदा कर दिया था कि तत्कालीन ‘महाराजाओं' ने विदेशी शासकों और अंग्रेजों के उत्पीड़न के आगे घुटने टेक दिए थे और यहां तक कि अपनी बेटियों की शादी भी उनसे कर दी थी।

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हार के लिए तैयार रहने को कहा
रूपाला के माफी मांगने के बावजूद क्षत्रियों (जिन्हें राजपूत भी कहा जाता है) ने इस टिप्पणी को अपने अपमान के तौर पर देखा और भाजपा से रुपाला की उम्मीदवारी वापस लेने या हार के लिए तैयार रहने को कहा।पाटीदार बहुल यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। गुजरात में सभी 26 लोकसभा सीटों पर चुनाव के लिए 7 मई को मतदान होगा। भाजपा ने दो बार के सांसद मोहन कुंदरिया के स्थान पर पाटीदार समुदाय के कडवा उप-वर्ग से आने वाले रूपाला को इस सीट से प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने लेवा पाटीदार समुदाय से आने वाले पूर्व विधायक परेश धनानी को प्रत्याशी बनाया है। रूपाला और धनानी पड़ोसी अमरेली जिले से ताल्लुक रखते हैं।

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राजकोट लोकसभा सीट पर करीब 23 लाख मतदाता
तीन बार के राज्यसभा सदस्य रूपाला पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह 1991, 1995 और 1998 में अमरेली से विधायक रह चुके हैं। राज्य में 2022 के विधानसभा चुनाव में धनानी ने अमरेली से रूपाला को हराया था। धनानी ने 2012 और 2017 में भी इस विधानसभा सीट से जीत दर्ज की थी लेकिन 2022 में भाजपा के कौशिक वेकारिया से हार गए थे। धनानी ने अमरेली से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें भाजपा के नारण कछाडिया ने हरा दिया था। राजकोट लोकसभा सीट पर करीब 23 लाख मतदाता हैं। पाटीदार - कडवा और लेवा 5.8 लाख मतदाताओं के साथ निर्णायक स्थिति में हैं। इस सीट पर 3.5 लाख कोली मतदाता, 2.3 लाख मलधारी (दोनों ओबीसी), 1.5 लाख राजपूत, 1.8 लाख दलित, करीब 2 लाख अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाता और 3 लाख ब्राह्मण तथा लोहाना समुदाय के मतदाता हैं।

मोदी का नाम और विकास कार्य ही समर्थन करने के लिए पर्याप्त
राजनीतिक विश्लेषक जगदीश आचार्य ने बातचीत में दावा किया कि राजपूत रूपाला को ज्यादा से ज्यादा यह नुकसान पहुंचा सकते हैं कि उनकी जीत के अंतर में करीब 50,000 मत कम हों। करीब चार लाख लेवा पाटीदार और कुछ हजार भाजपा विरोधी राजपूत मतदाताओं की मदद से धनानी की जीत की संभावना पर आचार्य ने कहा कि संभावना बेहद कम है। उन्होंने कहा कि यहां मतदाताओं के लिए प्रधानमंत्री मोदी का नाम और विकास कार्य ही भाजपा का समर्थन करने के लिए पर्याप्त हैं। राजकोट लोकसभा सीट के तहत सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं और सभी में अभी भाजपा के विधायक हैं। भाजपा 1989 से राजकोट लोकसभा सीट पर जीत दर्ज करती रही है। केवल 2009 में भाजपा की किरन पटेल को कांग्रेस के कुंवरजी बावलिया ने हराया था।

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मतदाता भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी से खुश
एक स्थानीय वरिष्ठ नागरिक प्रग्नेश ठक्कर ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन और राजकोट शहर का विकास अहम मुद्दे हैं जिनके आधार पर उनके जैसे कई लोग भाजपा के लिए वोट करेंगे। स्थानीय निवासी रक्षित पटेल ने भी दावा किया कि मतदाता भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी से खुश हैं। राजनीतिक विश्लेषक जगदीश मेहता ने कहा कि राजकोट भाजपा का र्निविवाद गढ़ है। उन्होंने दावा किया, ‘‘राजपूतों के आंदोलन के बावजूद रूपाला को राजकोट से हराना असंभव है। रूपाला के खिलाफ बड़ी संख्या में लोगों का गुस्सा वोटों में तब्दील होना चाहिए, जो संभव नहीं है क्योंकि भाजपा समर्थक वोटों की संख्या आख़िरकार भाजपा विरोधी वोटों पर भारी पड़ेगी।'' उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा ने एक समर्पित वोट बैंक बनाया है जो यहां उसकी सबसे बड़ी ताकत है।'' 

 

 

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