कान्हा संग भक्तों ने खेली होली, कहीं और नहीं दिखेगी बांके-बिहारी मंदिर जैसी धूम

Edited By vasudha,Updated: 25 Mar, 2021 11:16 AM

devotees played holi with kanha

कान्हा की नगरी मथुरा में होली के धूमधड़ाका ने गति पकड ली है। यहां के लोगों में होली की मस्ती सिर चढ़कर बोल रही है। वृंदावन में विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में भक्तों ने एकादशी के मौके पर कान्हा के साथ जमकर होली खेली। देश विदेश से आए श्रद्धालु...

नेशनल डेस्क: कान्हा की नगरी मथुरा में होली के धूमधड़ाका ने गति पकड ली है। यहां के लोगों में होली की मस्ती सिर चढ़कर बोल रही है। वृंदावन में विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में भक्तों ने एकादशी के मौके पर कान्हा के साथ जमकर होली खेली। देश विदेश से आए श्रद्धालु होली के रंग में पूरी तरह रंग चुके हैं। वृंदावन की होली बहुत ही खास होती है क्योंकि ये वो जगह है जहां भगवान कृष्ण का बचपन बीत था।

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वैसे तो कान्हा की नगरी में हर एक जगह होली की धूम दिखाई देती है लेकिन बांके-बिहारी मंदिर जैसी होली कहीं और देखने को नहीं मिलती। श्रीकृष्ण के भजन पर झूमते-नाचते लोग और गुलाब की खुशबू से पूरा माहौल सरोबार हो जाता है। बाल गोपाल के जयकारों से पूरी नगरी गूंज उठती है। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के वृंदावन धाम में रमण रेती पर स्थित है बांके बिहारी मंदिर। वृंदावन में ठाकुर जी के 7 जाने-माने मंदिरों श्री राधावल्लभ जी, श्री गोविंद देव जी, श्री राधा रमण जी, श्री राधा माधव जी, श्री मदन मोहन जी और श्री गोपीनाथ जी में से एक है।

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वहीं फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन यानि मंगलवार को मथुरा जनपद के बरसाना कस्बे में एक बार फिर कृष्णयुगीन होली का वह दृश्य देखने को मिला था जब राधारानी और उनकी सखियों के गली से गुजरते समय कृष्ण और उनके सखाओं ने उनसे चुहलबाजी शुरु की थी और उन्होंने भी हाथ में पकड़ी छड़ियों से उन सबकी खबर ली थी। उसी प्रकार बरसाना के गोस्वामी समाज के आमंत्रण पर नन्दगांव के हुरियारे धोती-कुर्ता पहनकर सिर पर साफा, कमर में पटका बांधे बरसाना के लाड़िली जी के मंदिर पहुंचे। पहले तो उन्होंने राधारानी के दर्शन किए, फिर करीब 600 फुट ऊॅंचे ब्रह्मांचल पर्वत से नीचे उतर कर गलियों में पहुचे तो वहां मौजूद सखियों से चुहलबाजी करने लगे।

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पहले तो राधारानी की सखियां बनीं बरसाना के गोस्वामी समाज की हुरियारिनों ने उनका जवाब उन्हीं के समान दिया लेकिन जब हुरियारों ने कुछ ज्यादा ही चुहलबाजी की तो हुरियारिनों ने लट्ठ बजाने शुरु कर दिए। पहली बार बरसाना की लठामार होली देखने पहुंचे श्रद्धालुओं के लिए यह दृश्य बेहद अद्भुत था। उन्होंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि उन्हें ऐसी भी होली देखने को मिलेगी जहां रंगों के साथ-साथ लट्ठ भी खाने पड़ते हैं। रंग-गुलाल के साथ-साथ मानो इंद्रदेव भी होली खेलने धरती पर उतर आए थे। काली घटाएं घिर आई और चारों ओर से रिमझिम फुहारों ने होली के आनंद को कई गुना बढ़ा दिया।  उन्होंने सजी-धजी हुरियारिनों के मुख से प्यार भरी गालियां और हाथों में लिए लट्ठों की मार का ऐसा दृश्य कभी देखने को नहीं मिला था। बरसाना में राधारानी की सखियों के चेहरे पर उल्लास था।

 

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