निर्वाचन आयोग को राहुल गांधी के आरोपों की जांच का आदेश देना चाहिए था: कुरैशी

Edited By Updated: 14 Sep, 2025 05:08 PM

election commission should have ordered an inquiry into rahul gandhi s

पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने ‘‘वोट चोरी' के आरोपों पर निर्वाचन आयोग की प्रतिक्रिया को लेकर रविवार को उस पर निशाना साधा और कहा कि आयोग को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के लिए ‘‘आपत्तिजनक और अपमानजनक' भाषा का इस्तेमाल करने की बजाय उनके...

नेशनल डेस्क: पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने ‘‘वोट चोरी'' के आरोपों पर निर्वाचन आयोग की प्रतिक्रिया को लेकर रविवार को उस पर निशाना साधा और कहा कि आयोग को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के लिए ‘‘आपत्तिजनक और अपमानजनक'' भाषा का इस्तेमाल करने की बजाय उनके आरोपों की जांच का आदेश देना चाहिए था। कुरैशी ने ‘पीटीआई-भाषा' के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि आरोप लगाते समय गांधी की ओर से इस्तेमाल किए गए अधिकांश शब्द, जैसे कि एक “हाइड्रोजन बम” आदि “राजनीतिक बयानबाजी” थी।

कुरैशी ने इस बात पर जोर दिया कि गांधी ने जो शिकायतें रखीं, उनकी विस्तार से जांच की जानी चाहिए। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त कुरैशी ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तरीके को लेकर आयोग की आलोचना की और कहा कि यह न केवल "भानुमति का पिटारा खोलना" है, बल्कि निर्वाचन आयोग ने "मधुमक्खी के छत्ते" में हाथ डाल दिया है, जिससे उसे नुकसान होगा। उन्होंने जगरनॉट बुक्स द्वारा प्रकाशित अपनी नयी पुस्तक 'डेमोक्रेसीज हार्टलैंड' के विमोचन से पहले ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, "आपको पता है कि मैं जब भी निर्वाचन आयोग की कोई आलोचना सुनता हूं तो मैं न केवल भारत के नागरिक के रूप में बहुत चिंतित और आहत महसूस करता हूं, बल्कि ऐसा इसलिए भी महसूस करता हूं क्योंकि मैं स्वयं मुख्य निर्वाचन आयुक्त रह चुका हूं और मैंने भी उस संस्था में थोड़ा योगदान दिया है।" साल 2010 से 2012 के बीच मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) रहे कुरैशी ने कहा, "जब मैं देखता हूं कि उस संस्था पर हमला हो रहा है या उसे किसी भी तरह से कमजोर किया जा रहा है, तो मुझे चिंता होती है। निर्वाचन आयोग को भी आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और चिंतित होना चाहिए। यह उन पर निर्भर है कि वे उन सभी ताकतों और दबावों का सामना करें जो उनके फैसलों को प्रभावित कर रहे हैं।"

उन्होंने कहा, "उन्हें लोगों का विश्वास जीतना होगा - आपको विपक्षी दलों का विश्वास जीतने की जरूरत है। मैंने हमेशा विपक्षी दलों को प्राथमिकता दी है क्योंकि वे कमजोर होते हैं।" कुरैशी ने कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी को विपक्ष की तरह विशेष देखभाल की जरूरत नहीं होती क्योंकि वह सत्ता में होती है जबकि विपक्ष सत्ता में नहीं होता। उन्होंने कहा, "इसलिए (जब मैं मुख्य निर्वाचन आयुक्त था) मेरे स्टाफ को आम तौर पर निर्देश होता था कि यदि वे (विपक्षी दल) मिलने का समय चाहते हैं, तो दरवाजे खुले रखें और उन्हें तुरंत समय दें, उनकी बात सुनें, उनसे बात करें, यदि वे कोई छोटी-मोटी मदद चाहते हैं, तो उनकी करें, बशर्ते कि इससे किसी और को नुकसान न हो।"

उन्होंने कहा कि अब विपक्ष को बार-बार उच्चतम न्यायालय जाना पड़ता है और वास्तव में 23 दलों को कहना पड़ा है कि उन्हें मुलाकात का समय नहीं मिल रहा और कोई उनकी बात नहीं सुन रहा। कुरैशी ने कहा कि आयोग को गांधी को शपथपत्र दाखिल करने के लिए कहने के बजाय उनके आरोपों की जांच करवानी चाहिए थी। कुरैशी ने कहा, "राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष हैं, इसलिए निर्वाचन आयोग को उनके लिए उस तरह की भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था जैसा उसने किया। मुझे लगता है कि यह वह निर्वाचन आयोग नहीं है, जिसे हम जानते हैं। आखिरकार, वह नेता प्रतिपक्ष हैं, वह कोई आम आदमी नहीं हैं। वह लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वह लाखों लोगों की राय व्यक्त कर रहे हैं और उनसे यह कहना कि, 'शपथपत्र दीजिए, वरना हम यह करेंगे, वह करेंगे', उसका (आयोग का) व्यवहार आपत्तिजनक व अपमानजनक, दोनों है।”

उन्होंने कहा, "मैंने अक्सर कहा है कि मान लीजिए कि वे (विपक्ष) पलटकर कहते हैं कि 'ठीक है, आप एक नयी मतदाता सूची पेश कर रहे हैं, एक शपथपत्र दीजिए कि इसमें कोई गलती नहीं है। और अगर कोई गलती हुई तो आप पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाएगा।' क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं?" कुरैशी ने कहा कि आयोग को आरोपों की जांच का आदेश देना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सिर्फ नेता प्रतिपक्ष ही नहीं, बल्कि अगर किसी ने भी शिकायत की है तो सामान्य प्रक्रिया यह है कि तुरंत जांच का आदेश दिया जाए।

उन्होंने कहा, "हमें (निर्वाचन आयोग को) न केवल निष्पक्ष होना चाहिए, बल्कि निष्पक्ष दिखना भी चाहिए। जांच से तथ्य सामने आते हैं। इसलिए, आयोग ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दी, उसके बजाय जांच कराना सही रहता और उन्होंने एक अवसर गंवा दिया।" कुरैशी की यह टिप्पणी ऐसे समय आयी है जब मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने पिछले महीने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि गांधी को मतदाता सूची में अनियमितताओं के अपने आरोपों के बारे में सात दिन में शपथपत्र दाखिल करना चाहिए, अन्यथा उनके 'वोट चोरी' के दावे निराधार और अमान्य हो जाएंगे। गांधी ने इससे पहले एक संवाददाता सम्मेलन में एक प्रस्तुति के जरिए 2024 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े का हवाला देते हुए दावा किया था कि कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में पांच तरह की हेराफेरी करके एक लाख से अधिक वोट "चुराए" गए।

उन्होंने अन्य राज्यों में भी इसी तरह की अनियमितताओं का आरोप लगाया। गांधी ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ बिहार में 'वोटर अधिकार यात्रा' भी निकाली, जिसमें उन्होंने '‘वोट चोरी'' के लिए भाजपा और आयोग के बीच मिलीभगत का आरोप लगाया। गांधी के इस दावे के बारे में पूछे जाने पर कि वह जल्द ही "वोट चोरी" पर खुलासे का "हाइड्रोजन बम" लेकर आएंगे, कुरैशी ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष ने इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया है और इसमें से अधिकांश "राजनीतिक बयानबाजी" है जिसे इसी रूप में लिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, "लेकिन साथ ही, यदि कोई गंभीर मुद्दा है, गंभीर शिकायतें हैं जो वह उठा रहे हैं, तो उन मुद्दों-शिकायतों की न केवल विपक्ष के नेता की संतुष्टि के लिए बल्कि पूरे देश की संतुष्टि के लिए विस्तार से जांच की जानी चाहिए।” यह पूछे जाने पर कि क्या चुनावी प्रक्रिया पर लोगों का भरोसा डगमगा गया है तो कुरैशी ने हां में जवाब दिया। मतदाता सूची में शामिल होने के लिए उपलब्ध कराए जा सकने वाले दस्तावेजों की सूची से मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) को बाहर रखने के पीछे के तर्क पर सवाल उठाते हुए कुरैशी ने कहा कि ईपीआईसी स्वयं निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किया जाता है और इसे मान्यता नहीं देने के बहुत गंभीर प्रभाव होंगे। 

 

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